प्रस्तावना:
चंद शासकों ने साहित्य को संरक्षण दिया, जिससे कुमाऊँ की सांस्कृतिक पहचान समृद्ध हुई। उन्होंने विद्वानों और कवियों को अपने दरबार में आश्रय दिया, जिससे संस्कृत, हिंदी और कुमाऊँनी भाषाओं में साहित्यिक रचनाओं का विकास हुआ। यह संरक्षण न केवल कला और ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए था, बल्कि यह शासकों की प्रतिष्ठा और सांस्कृतिक विरासत को भी दर्शाता था।
रुद्र चंद का व्यक्तिगत योगदान: चंद वंश के शासकों में रुद्र चंद (1568-1597) का नाम साहित्यिक संरक्षण के लिए विशेष रूप से उल्लेखनीय है। वे स्वयं एक विद्वान और लेखक थे। उन्होंने संस्कृत में तीन महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की: ‘श्येनशास्त्र’, जो बाज के शिकार पर आधारित है, ‘उषारागोदय’, और ‘त्रैवर्णिक धर्म निर्णय’। इनमें से ‘त्रैवर्णिक धर्म निर्णय’ एक कानून संहिता है जो सामाजिक और धार्मिक नियमों को परिभाषित करती है। रुद्र चंद ने विद्वानों को संरक्षण दिया और उन्हें अपनी रचनाओं को पूरा करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने योग्य छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए काशी (वाराणसी) भी भेजा, जिससे कुमाऊँ में ज्ञान की एक मजबूत परंपरा विकसित हुई।
संस्कृत भाषा का राजकीय संरक्षण: चंद शासकों ने संस्कृत भाषा को विशेष सम्मान दिया। उन्होंने इसे राजभाषा का दर्जा दिया और इसे बढ़ावा देने के लिए कई संस्कृत पाठशालाएँ स्थापित कीं। यह संरक्षण कत्यूरी शासकों के समय से चली आ रही परंपरा का हिस्सा था, लेकिन चंद शासकों ने इसे और भी मजबूत किया। इस काल में कई महत्वपूर्ण संस्कृत ग्रंथ लिखे गए। उदाहरण के लिए, कवि शिव ने राजा कल्याण चंद के शासनकाल के दौरान ‘कल्याणचंद्रोदयम्’ नामक एक ऐतिहासिक काव्य की रचना की, जिसमें राजा की उपलब्धियों का वर्णन किया गया है।
स्थानीय साहित्य का विकास: चंद शासकों के संरक्षण में न केवल संस्कृत, बल्कि स्थानीय भाषाओं, विशेष रूप से कुमाऊँनी में भी साहित्य का विकास हुआ। यद्यपि इस काल के कई साहित्यिक स्रोत मौखिक परंपरा में ही रहे, लेकिन कुछ लिखित प्रमाण भी मिलते हैं, जैसे कि अभय चंद द्वारा 1371 ईस्वी में उत्कीर्ण कराया गया कुमाऊँनी भाषा का प्राचीनतम अभिलेख। इन अभिलेखों और ताम्रपत्रों में उस समय के सामाजिक, धार्मिक और प्रशासनिक जीवन की झलक मिलती है। इस तरह, चंद शासकों ने स्थानीय सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कुमाऊँ की सांस्कृतिक पहचान का निर्माण: साहित्यिक संरक्षण ने कुमाऊँ की सांस्कृतिक पहचान को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके माध्यम से, चंद शासकों ने अपनी वीरता, धर्मपरायणता और प्रशासनिक कौशल को अमर किया। यह साहित्य न केवल इतिहास का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, बल्कि यह कुमाऊँ की कला, रीति-रिवाजों और लोककथाओं को भी दर्शाता है। इन ग्रंथों ने कुमाऊँ के लोगों के बीच एक साझा सांस्कृतिक विरासत का निर्माण किया, जिसने उनकी सामूहिक पहचान को मजबूत किया। यह संरक्षण धार्मिक ग्रंथों, काव्य, और ऐतिहासिक दस्तावेजों के माध्यम से किया गया, जिससे कुमाऊँ एक समृद्ध सांस्कृतिक केंद्र के रूप में उभरा।
निष्कर्ष:
चंद शासकों का साहित्यिक संरक्षण एक दूरदर्शी कदम था, जिसने कुमाऊँ की सांस्कृतिक पहचान को एक ठोस आधार प्रदान किया। उन्होंने स्वयं लेखक बनकर, विद्वानों को आश्रय देकर और ज्ञान को बढ़ावा देकर एक ऐसी विरासत का निर्माण किया जो आज भी कुमाऊँ की सांस्कृतिक समृद्धि का प्रमाण है।