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चंद शासकों की प्रशासनिक संरचना का मूल्यांकन तथा उसकी कत्युरी शासकों से तुलना

प्रस्तावना:

उत्तराखंड के मध्यकालीन इतिहास में कत्युरी और चंद दोनों वंशों का विशेष स्थान रहा है। कत्युरी शासक (7वीं से 11वीं शताब्दी) को कुमाऊँ क्षेत्र के प्रारंभिक संगठित शासक माना जाता है, जबकि चंद शासक (11वीं से 18वीं शताब्दी) ने प्रशासन और संस्कृति को नई दिशा दी। इन दोनों की प्रशासनिक व्यवस्थाओं की तुलना करने पर क्षेत्रीय शासन पद्धति और राज्यसत्ता के विकास की स्पष्ट झलक मिलती है।

कत्युरी शासकों की प्रशासनिक संरचना:

  • कत्युरी शासन की राजधानी बागेश्वर के समीप “कार्तिकेयपुर” (कट्यूर घाटी) थी।
  • प्रशासन में केंद्रीकरण की प्रवृत्ति थी, राजा सर्वोच्च अधिकार संपन्न था और राज्य को कई छोटे-छोटे मंडलों में विभाजित किया गया था।
  • स्थानीय स्तर पर भूमिहार और ग्राम प्रमुख महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे।
  • कर प्रणाली मुख्यतः कृषि पर आधारित थी और मंदिरों को भूमि अनुदान देने की प्रथा प्रचलित थी।
  • धार्मिक संस्थाएँ और ब्राह्मण वर्ग प्रशासनिक तथा सांस्कृतिक जीवन में प्रभावशाली रहे।

चंद शासकों की प्रशासनिक संरचना:

  • चंद शासक कत्युरी शासन के पतन के बाद सत्ता में आए और चंपावत को राजधानी बनाया।
  • उन्होंने प्रशासन को अधिक संगठित और संरचित रूप दिया।
  • राज्य को परगनों में विभाजित किया गया, जहाँ नियुक्त अधिकारी (किलेदार, परगना अधिकारी) शासन व कर-संग्रह देखते थे।
  • कर व्यवस्था अपेक्षाकृत सुसंगठित थी और भूमि कर के अतिरिक्त व्यापारिक कर भी वसूले जाते थे।
  • चंद शासक कला, स्थापत्य और साहित्य के संरक्षक थे, जिससे प्रशासनिक स्थिरता के साथ सांस्कृतिक प्रगति भी हुई।

दोनों व्यवस्थाओं की समानताएँ:

  • दोनों वंशों में राजा सर्वोच्च सत्ता का धारक था।
  • धार्मिक और सांस्कृतिक संस्थानों को संरक्षण देकर वैधता प्राप्त की जाती थी।
  • स्थानीय स्तर पर भूमि आधारित कर प्रणाली का महत्व समान रूप से रहा।

दोनों व्यवस्थाओं में भिन्नताएँ:

  • कत्युरी प्रशासन अपेक्षाकृत विकेंद्रित और कम औपचारिक था, जबकि चंद प्रशासन अधिक केंद्रीकृत और व्यवस्थित था।
  • कत्युरियों ने मंदिर आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया, जबकि चंद शासकों ने व्यापार और शिल्प को भी महत्व दिया।
  • चंद काल में बाहरी संपर्क (मुगलों व अन्य राज्यों से) अधिक रहा, जिससे प्रशासन में जटिलता और आधुनिकता आई।

प्रभाव और परिणाम:

  • कत्युरी प्रशासन ने शासन की नींव रखी और पहाड़ी समाज को संगठित किया।
  • चंद प्रशासन ने इस नींव पर आगे बढ़कर एक स्थायी और सुव्यवस्थित राज्य का निर्माण किया, जिससे कुमाऊँ की राजनीतिक स्थिरता और सांस्कृतिक उन्नति संभव हुई।

निष्कर्ष:

कत्युरी और चंद शासकों की प्रशासनिक व्यवस्थाएँ उत्तराखंड के मध्यकालीन राजनीतिक इतिहास की रीढ़ थीं। जहाँ कत्युरियों ने प्रशासनिक आधारशिला रखी, वहीं चंद शासकों ने उसे अधिक विकसित और संगठित रूप दिया। दोनों की तुलना से स्पष्ट होता है कि उत्तराखंड की शासन प्रणाली निरंतर परिवर्तनशील और उन्नतिशील रही, जिसने क्षेत्रीय एकता और सांस्कृतिक पहचान को सुदृढ़ बनाया।

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