प्रस्तावना:
चंद राजवंश के शासकों में उद्योत चंद का शासनकाल (1678-1698 ई.) विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। वह एक पराक्रमी योद्धा होने के साथ-साथ एक धार्मिक और दूरदर्शी शासक भी था, जिसने अपने शासनकाल में अनेक सैन्य विजय प्राप्त कीं और धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यों को भी बढ़ावा दिया। उसका शासनकाल युद्ध, स्थापत्य कला और सांस्कृतिक समृद्धि का एक महत्वपूर्ण काल था।
सैन्य विजय और राज्य विस्तार: गद्दी पर बैठते ही उद्योत चंद ने अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया। उसने सबसे पहले पंवार राज्य के बधाणगढ़ पर आक्रमण कर उसे 1678 ईस्वी में जीत लिया। अगले वर्ष, उसने गढ़वाल पर पुनः आक्रमण कर चांदपुर गढ़ पर विजय प्राप्त की। जब गढ़वाल और डोटी के राजाओं ने मिलकर उस पर हमला किया, तो उसने दोनों को पराजित कर अपनी सीमा से बाहर खदेड़ दिया। अपनी सैन्य सफलताओं के बाद, उसने राज्य की सुरक्षा के लिए विभिन्न स्थानों पर सैन्य छावनियां भी स्थापित कीं।
डोटी विजय और रणनीतिक प्रभुत्व: उद्योत चंद की सबसे महत्वपूर्ण सैन्य उपलब्धि डोटी राज्य पर विजय थी। जब डोटी नरेश देवपाल ने उसके राज्य पर पुनः अधिकार कर लिया, तो उद्योत चंद ने त्वरित कार्रवाई करते हुए देवपाल को उसकी ग्रीष्मकालीन राजधानी अजमेरगढ़ तक खदेड़ दिया और 1683 ईस्वी में उस पर अधिकार कर लिया। यह विजय ऐतिहासिक रूप से विशेष थी, क्योंकि भारती चंद के बाद उद्योत चंद ही एकमात्र ऐसा राजा था जिसने नेपाल पर आक्रमण कर वहाँ की राजधानी पर विजय प्राप्त की। इस जीत ने न केवल उसकी सैन्य श्रेष्ठता को साबित किया, बल्कि चंद राजवंश का रणनीतिक प्रभुत्व भी स्थापित किया।
धार्मिक और सांस्कृतिक योगदान: उद्योत चंद एक धार्मिक प्रवृत्ति का शासक था और उसने अनेक मंदिरों का निर्माण कराया। इनमें उद्योत चंद्रेश्वर मंदिर, पार्वतीश्वर मंदिर, और त्रिपुरा देवी मंदिर प्रमुख हैं। उसने केवल मंदिरों का ही निर्माण नहीं किया, बल्कि कोटा भाभर (तराई क्षेत्र) में आम के बगीचे भी लगवाए, जिससे कृषि को बढ़ावा मिला। उसके इस योगदान ने कुमाऊं की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को और गहरा किया। उसके पुत्र ज्ञानचंद ने भी इस परंपरा को जारी रखा, जिन्होंने कई मंदिरों का जीर्णोद्धार और निर्माण करवाया।
प्रशासनिक कार्य और साहित्यिक साक्ष्य: उद्योत चंद का शासनकाल सिर्फ युद्धों तक सीमित नहीं था। वह एक कुशल प्रशासक भी था, जिसका प्रमाण बरम (मुवानी-पिथौरागढ़) क्षेत्र से प्राप्त उसके ताम्रपत्र से मिलता है। इस ताम्रपत्र में उसके प्रशासनिक कार्यों का विवरण मिलता है। इसके अतिरिक्त, उसके शासनकाल की घटनाओं और युद्धों की जानकारी कुमाऊं के इतिहास और लोकगाथाओं में भी दर्ज है, जो उसके योगदानों को प्रमाणित करती हैं। ये साक्ष्य यह दर्शाते हैं कि उसने अपने शासन को एक मजबूत प्रशासनिक आधार पर खड़ा किया था।
निष्कर्ष:
उद्योत चंद का शासनकाल चंद राजवंश के इतिहास में सैन्य विजय और धार्मिक आस्था का संगम था। उनकी वीरता और रणनीतिक कौशल ने कुमाऊं को एक सशक्त राज्य के रूप में स्थापित किया, जबकि उनके द्वारा बनवाए गए मंदिर और किए गए सांस्कृतिक कार्य आज भी उनकी विरासत के रूप में मौजूद हैं। उनका योगदान एक शक्तिशाली और समृद्ध राज्य के निर्माण में महत्वपूर्ण रहा, जिसने चंद राजवंश की प्रतिष्ठा को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।