प्रस्तावना:
उत्तराखंड के मध्यकालीन इतिहास में चंद वंश (कुमाऊँ) और परमार वंश (गढ़वाल) दोनों ने अपने राज्यों को संगठित करने में सामंतों की महत्वपूर्ण भूमिका ली। सामंती शासक न केवल प्रशासनिक ढाँचे का हिस्सा थे, बल्कि सैन्य शक्ति के मुख्य आधार भी बने। दोनों राजवंशों में सामंतों की भूमिका और सैन्य संरचना में कई समानताएँ थीं, किंतु कुछ विशिष्ट असमानताएँ भी दिखाई देती हैं।
सामंतों की राजनीतिक भूमिका: चंद वंश में सामंतों को गाँवों और परगनों के प्रबंधन की जिम्मेदारी दी जाती थी। वे कर-संग्रह, शांति-व्यवस्था और स्थानीय विवादों का निपटारा करते थे। परमार वंश में सामंत, जिन्हें प्रायः गढ़पति कहा जाता था, गढ़ (किलों) के अधिपति होते थे और गढ़वाल की राजनीतिक संरचना का आधार बनते थे। इस प्रकार, दोनों वंशों में सामंतों ने स्थानीय शासन को स्थिर बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई।
सैन्य संरचना में सामंतों की भूमिका: चंद वंश में सामंतों की सैन्य जिम्मेदारी यह थी कि युद्ध या बाहरी आक्रमण की स्थिति में वे अपने सैनिकों सहित राजा की सेना में सम्मिलित हों। वहीं, परमार वंश की सैन्य संरचना पूरी तरह गढ़-आधारित थी, जहाँ प्रत्येक गढ़पति को अपने क्षेत्र की सुरक्षा और सैनिक व्यवस्था बनाए रखना अनिवार्य था।
समानताएँ: दोनों राजवंशों में सामंत सैन्य शक्ति के मुख्य स्तंभ थे। वे अपने-अपने क्षेत्रों से सैनिक, घोड़े और अनाज उपलब्ध कराते थे। राजा की सत्ता इन सामंतों के सहयोग से ही व्यावहारिक रूप से चलती थी। इसके अतिरिक्त, दोनों ही वंशों में सामंत धार्मिक और सांस्कृतिक संरक्षण में भी सहभागी थे।
असमानताएँ: जहाँ चंद वंश की सैन्य संरचना अपेक्षाकृत केंद्रीकृत थी और सामंत राजा के अधीनस्थ रहते थे, वहीं परमार वंश की गढ़-प्रणाली अधिक विकेंद्रीकृत थी। गढ़पति अपने गढ़ों में स्वतंत्र अधिकारों का प्रयोग करते थे और कभी-कभी केंद्रीय सत्ता के लिए चुनौती भी बन जाते थे। इस प्रकार गढ़वाल की राजनीति में सामंतों का प्रभाव कुमाऊँ की तुलना में अधिक स्वायत्त था।
राजनीति पर प्रभाव: सामंतों की भूमिका ने दोनों राज्यों की राजनीति को गहराई से प्रभावित किया। चंद वंश में सामंत केंद्रीय सत्ता को मजबूत करते रहे, जबकि परमार वंश में गढ़पति कभी सहयोगी तो कभी विरोधी के रूप में उभरे। गढ़-आधारित सैन्य संरचना ने गढ़वाल की राजनीति को अधिक जटिल और प्रतिस्पर्धी बना दिया।
निष्कर्ष:
इस प्रकार, चंद और परमार राजवंशों में सामंत प्रशासन और सैन्य संरचना के अभिन्न अंग थे। दोनों में समानता यह थी कि सामंत स्थानीय प्रशासन और सेना के लिए आवश्यक थे, किंतु असमानता यह थी कि चंद वंश के सामंत राजा के अधीन नियंत्रित रहते थे, जबकि परमार वंश में गढ़पति अपेक्षाकृत स्वतंत्र और प्रभावशाली थे। इन सामंतों की भूमिका ने न केवल प्रशासनिक और सैन्य ढाँचे को आकार दिया, बल्कि दोनों राज्यों की राजनीति को भी विशेष रूप से प्रभावित किया।