प्रस्तावना:
उत्तराखंड के इतिहास में चंद राजवंश (कुमाऊँ) और परमार राजवंश (गढ़वाल) दोनों ने दीर्घकाल तक शासन किया। दोनों राजवंशों की प्रशासनिक व्यवस्था में कई समानताएँ थीं, क्योंकि वे हिमालयी भू-परिस्थितियों और स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप शासन चला रहे थे। साथ ही, कर-संग्रह और न्याय व्यवस्था में कुछ भिन्नताएँ भी स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं।
प्रशासनिक ढाँचे की समानता: दोनों राजवंशों ने एक केंद्रीकृत राजसत्ता स्थापित की थी जिसमें राजा सर्वोच्च शासक था। उसके अधीन विभिन्न स्तरों पर अधिकारी नियुक्त किए जाते थे। जैसे—चंद वंश में किलेदार और कुर्मचार प्रशासनिक कार्य देखते थे, वैसे ही परमार वंश में गढ़पति और कौटवाल की नियुक्ति की जाती थी। यह समानता उनके प्रशासन को संगठित और स्थिर बनाती थी।
कर-संग्रह प्रणाली में भिन्नता: चंद राजाओं ने भूमि से लगान (भू-राजस्व) को प्रमुख आय का साधन बनाया था। किसानों से उपज का एक निश्चित भाग लिया जाता था। उदाहरण के लिए, चंद शासक बाज बहादुर चंद के काल में कर-संग्रह का कठोर पालन होता था। इसके विपरीत, परमार वंश में कर-संग्रह अधिकतर गढ़ आधारित था, जहाँ प्रत्येक गढ़पति से निश्चित कर लिया जाता था और फिर वह स्थानीय जनता से वसूली करता था। यह व्यवस्था गढ़-आधारित सैन्य संरचना पर अधिक निर्भर थी।
न्यायिक व्यवस्था में अंतर: चंद राजाओं ने न्याय के लिए स्थानीय पंचायतों और अधिकारी वर्ग पर भरोसा किया, किंतु अंतिम निर्णय का अधिकार राजा के पास ही रहता था। भूमि विवादों और कर संबंधी मामलों में राजा की विशेष भूमिका थी। उदाहरणस्वरूप, चंद वंश में मंदिर परिसरों में न्यायिक फैसले दिए जाते थे। परमार वंश में न्याय व्यवस्था अपेक्षाकृत अधिक विकेंद्रीकृत थी, जहाँ गढ़पति और स्थानीय मुखिया प्राथमिक स्तर पर विवाद सुलझाते थे। गंभीर मामलों में ही राजा हस्तक्षेप करता था।
सैन्य और प्रशासनिक संबंध: दोनों राजवंशों की प्रशासनिक संरचना में सेना को विशेष महत्व दिया गया। चंद वंश ने किलों और चौकियों के माध्यम से प्रशासन को मजबूत किया, वहीं परमार वंश ने गढ़-प्रणाली को अपनी शक्ति का आधार बनाया। इससे उनके प्रशासनिक ढाँचे और कर-संग्रह प्रणाली पर भी सीधा प्रभाव पड़ा।
सांस्कृतिक प्रभाव और जनता का संबंध: दोनों वंशों की प्रशासनिक नीतियाँ धार्मिक और सांस्कृतिक संरक्षण से भी जुड़ी थीं। चंद शासकों ने कुमाऊँ में मंदिरों और कला का विकास किया, जबकि परमार शासकों ने गढ़वाल में सांस्कृतिक एकता और मंदिर स्थापत्य को प्रोत्साहन दिया। प्रशासनिक संरचना और धार्मिक संरक्षण ने जनता में निष्ठा और विश्वास बनाए रखा।
निष्कर्ष:
इस प्रकार, चंद और परमार राजवंशों की प्रशासनिक संरचना में समानता इस तथ्य में थी कि दोनों ने केंद्रीकृत सत्ता को बनाए रखते हुए स्थानीय स्तर पर अधिकारियों को जिम्मेदारियाँ सौंपीं। किंतु कर-संग्रह और न्यायिक प्रणाली में उनकी भिन्नताएँ स्पष्ट दिखाई देती हैं—चंद वंश में भूमि-आधारित राजस्व और केंद्रीकृत न्याय था, जबकि परमार वंश में गढ़-आधारित कर-संग्रह और विकेंद्रीकृत न्याय व्यवस्था थी। इन भिन्नताओं ने दोनों क्षेत्रों के सामाजिक-आर्थिक जीवन को विशिष्ट रूप दिया।