परिचय
ग्लेशियर झील फटने से बाढ़ (Glacial Lake Outburst Floods – GLOFs) एक विनाशकारी प्राकृतिक आपदा है जो तब होती है जब ग्लेशियर से बनी झील का पानी अचानक और बड़ी मात्रा में बाहर निकल जाता है। ये झीलें अक्सर ग्लेशियरों के पिघलने से बनती हैं और आमतौर पर बर्फ, या मलबे (मोरेन) से बने प्राकृतिक बांधों द्वारा रोकी जाती हैं। जब ये बांध किसी कारणवश कमजोर हो जाते हैं या टूट जाते हैं, तो झील का पानी तीव्र गति से निचले इलाकों में बह निकलता है, जिससे व्यापक विनाश होता है। हिमालय जैसे उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में, जहाँ बड़ी संख्या में ग्लेशियर और हिमनद झीलें मौजूद हैं, जलवायु परिवर्तन के कारण GLOFs की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि देखी जा रही है। यह घटना न केवल पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है, बल्कि यह निचले इलाकों में रहने वाले समुदायों, बुनियादी ढाँचे और जल सुरक्षा के लिए भी गंभीर जोखिम पैदा करती है।
ग्लेशियर झील फटने से बाढ़ (GLOFs) के जोखिम और निगरानी से संबंधित प्रमुख पहलू:
ग्लेशियर झीलें क्या हैं और कैसे बनती हैं? ग्लेशियर झीलें वे जल निकाय हैं जो ग्लेशियरों के पिघलने से बनते हैं। ये झीलें कई प्रकार की होती हैं:
- मोरेन-बांधित झीलें (Moraine-dammed lakes): ये सबसे सामान्य और जोखिमपूर्ण झीलें हैं जो ग्लेशियर द्वारा छोड़े गए मलबे, जिसे मोरेन कहते हैं, से बने प्राकृतिक बांधों के पीछे बनती हैं। मोरेन का यह ढेर अक्सर अस्थिर और कमजोर होता है। जब ग्लेशियर पिघलता है, तो पानी इन कमजोर बांधों के पीछे जमा होता रहता है, जिससे झील का आकार बढ़ता है। ये झीलें बांध के टूटने पर बाढ़ (GLOF) का कारण बन सकती हैं।
- सुप्राग्लेशियल झीलें (Supraglacial lakes): ये झीलें ग्लेशियर की ऊपरी सतह पर बनती हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियरों की सतह पर बर्फ तेजी से पिघलने के कारण इनका निर्माण होता है। ये झीलें आकार में छोटी होती हैं लेकिन जब ये आपस में मिल जाती हैं या गहराई में चली जाती हैं, तो बड़ी हो सकती हैं। ये झीलें भी GLOF को जन्म दे सकती हैं, खासकर जब वे ग्लेशियर के अंदरूनी हिस्सों से जुड़ी हों।
- इम्प्रो-ग्लेशियल झीलें (Impro-glacial lakes): ये झीलें ग्लेशियर के अंदरूनी हिस्सों में या उसके नीचे बनती हैं, जहाँ पिघली हुई बर्फ जमा हो जाती है। जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने से नई झीलें बन रही हैं और मौजूदा झीलों का आकार बढ़ रहा है। ये झीलें अक्सर बाहर से दिखाई नहीं देतीं, जिससे इनका पता लगाना मुश्किल होता है। इन झीलों के अचानक फटने से भीषण बाढ़ (GLOF) आ सकती है।
GLOFs के कारण (Causes of GLOFs): GLOFs कई कारकों के कारण ट्रिगर हो सकते हैं:
- मोरेन बांध का कमजोर होना/टूटना: यह GLOF (ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड) का सबसे सामान्य कारण है। जब ग्लेशियर द्वारा बने मोरेन बांधों में पानी का दबाव बहुत अधिक बढ़ जाता है, तो वे कमजोर होकर टूट जाते हैं। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे भूस्खलन, हिमस्खलन, या भूकंप के झटके। बांध की सामग्री का क्षरण भी इसे कमजोर बना सकता है, जिससे अचानक बाढ़ आ जाती है।
- हिमस्खलन या चट्टान गिरना: जब ग्लेशियर झील में बर्फ, चट्टान या मलबा गिरता है, तो यह एक विशाल विस्थापन लहर (displacement wave) उत्पन्न करता है। यह लहर इतनी शक्तिशाली होती है कि यह झील के किनारे बने कमजोर मोरेन बांध को तुरंत तोड़ सकती है। इस अचानक और तीव्र क्रिया के कारण झील का पूरा पानी एक ही बार में नीचे की ओर बह निकलता है, जिससे एक विनाशकारी बाढ़ आती है।
- भूकंपीय गतिविधि (Seismic Activity): पहाड़ी क्षेत्रों में आने वाले भूकंप के झटके ग्लेशियल झीलों के लिए बेहद खतरनाक होते हैं। ये झटके झील के प्राकृतिक मोरेन बांधों की स्थिरता को हिला सकते हैं और उनमें दरारें पैदा कर सकते हैं। इसके अलावा, भूकंप से होने वाले भूस्खलन भी झील में गिरकर बांध पर दबाव बढ़ा सकते हैं, जिससे बांध टूट जाता है और भयानक बाढ़ आती है।
- अत्यधिक वर्षा या बर्फबारी: जब किसी क्षेत्र में भारी वर्षा या बर्फबारी होती है, तो ग्लेशियल झीलों में पानी का स्तर अचानक और तेजी से बढ़ जाता है। इस अतिरिक्त जल से मोरेन बांध पर दबाव बहुत बढ़ जाता है, खासकर जब बांध पहले से ही कमजोर हो। बढ़ा हुआ दबाव बांध की संरचना को कमजोर कर सकता है, जिससे यह टूट जाता है और बड़ी मात्रा में पानी निचले इलाकों की ओर बह निकलता है।
- ग्लेशियर का आगे बढ़ना/पीछे हटना: ग्लेशियर की गतिशीलता भी ग्लेशियल झीलों के लिए खतरा पैदा करती है। जब ग्लेशियर आगे बढ़ता है, तो यह झील के बांध को दबा सकता है, जिससे उसमें दरारें आ सकती हैं। इसके विपरीत, जब ग्लेशियर पीछे हटता है, तो बांध को सहारा मिलना बंद हो जाता है, जिससे वह अस्थिर हो जाता है। दोनों ही स्थितियाँ बांध के टूटने और GLOF के खतरे को बढ़ाती हैं।
GLOFs से जुड़े जोखिम (Risks Associated with GLOFs): GLOFs के परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं:
- जान-माल का नुकसान: ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) से आने वाली बाढ़ अपने साथ भारी मात्रा में मलबा, चट्टानें और पेड़ बहाकर लाती है। यह तेज बहाव निचले इलाकों में स्थित गांवों, घरों और कृषि योग्य भूमि को पूरी तरह से तबाह कर देता है। इसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर मानव जीवन और पशुधन की हानि होती है।
- बुनियादी ढाँचे का विनाश: GLOF से आने वाली बाढ़ बेहद शक्तिशाली होती है जो सड़कों, पुलों, जलविद्युत परियोजनाओं, और संचार नेटवर्क जैसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को नष्ट कर देती है। इस विनाश से प्रभावित क्षेत्र में आवाजाही और संचार पूरी तरह से ठप हो जाता है। पुनर्निर्माण में लंबा समय और भारी लागत लगती है, जिससे क्षेत्र का विकास बाधित होता है।
- आजीविका का नुकसान: बाढ़ के कारण कृषि योग्य भूमि और फसलें पूरी तरह से नष्ट हो जाती हैं। इसके अलावा, पशुधन के बह जाने और पर्यटन जैसी स्थानीय गतिविधियों के रुक जाने से समुदायों की आजीविका पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। इससे प्रभावित लोगों के लिए आय का कोई साधन नहीं बचता, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो जाती है।
- पर्यावरणीय क्षरण: GLOF से आने वाली बाढ़ से भारी मात्रा में मिट्टी का कटाव होता है, जिससे भूमि बंजर हो जाती है। यह बाढ़ रास्ते में आने वाली वनस्पति और जंगलों को भी नष्ट कर देती है। इसके अलावा, नदी के पारिस्थितिकी तंत्र में बड़ी मात्रा में गाद (silt) जमा हो जाती है, जो जलीय जीवन (जैसे मछलियों) के लिए हानिकारक होती है, जिससे पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ जाता है।
GLOFs के प्रति संवेदनशील क्षेत्र (Regions Vulnerable to GLOFs): हिमालयी क्षेत्र GLOFs के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। नेपाल, भूटान, भारत (विशेषकर उत्तराखंड, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर), चीन और पाकिस्तान के हिमालयी क्षेत्र में बड़ी संख्या में हिमनद झीलें हैं, जिनमें से कई संभावित रूप से खतरनाक हैं। एंडीज पर्वत श्रृंखला और अन्य हिमनद क्षेत्र भी GLOFs के प्रति संवेदनशील हैं।
GLOFs के रुझान और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव (Trends and Impact of Climate Change): वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण GLOFs की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि हुई है। बढ़ते तापमान के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे नई झीलें बन रही हैं और मौजूदा झीलों का आकार बढ़ रहा है। इसके अतिरिक्त, चरम मौसमी घटनाओं (जैसे अत्यधिक वर्षा) की बढ़ती आवृत्ति भी GLOFs को ट्रिगर कर सकती है। 2011 से 2024 के बीच हिमालय में हिमनद झीलों की संख्या में 10.8% की वृद्धि और उनके सतही क्षेत्र में 33.7% का विस्तार देखा गया है।
GLOFs की निगरानी के तरीके (Monitoring Methods for GLOFs): प्रभावी निगरानी जोखिमों को कम करने के लिए महत्वपूर्ण है:
- उपग्रह-आधारित निगरानी (Satellite-based Monitoring): रिमोट सेंसिंग और उपग्रहों की मदद से, वैज्ञानिक लगातार ग्लेशियल झीलों की निगरानी करते हैं। उपग्रह से प्राप्त चित्रों के आधार पर इन झीलों के आकार, आयतन, और किनारों पर बने मोरेन बांधों में होने वाले बदलावों का पता लगाया जाता है। यह तकनीक दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्रों में संभावित खतरों को पहचानने में बहुत प्रभावी है।
- भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS): भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) एक शक्तिशाली टूल है जो GLOF (ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड) से होने वाले जोखिम का मूल्यांकन करने में मदद करता है। GIS के माध्यम से, शोधकर्ता जोखिम मानचित्र तैयार करते हैं। ये मानचित्र उन क्षेत्रों की पहचान करते हैं जो GLOF से सबसे अधिक प्रभावित हो सकते हैं, जिससे आपदा प्रबंधन की योजना बनाने में सहायता मिलती है।
- जमीन-आधारित निगरानी (Ground-based Monitoring): जोखिम वाली झीलों के पास जमीन पर सेंसर और उपकरण स्थापित किए जाते हैं। ये उपकरण झील के जल स्तर, पानी के तापमान और मोरेन बांध की स्थिरता की लगातार निगरानी करते हैं। यदि कोई बदलाव होता है जो खतरे का संकेत देता है, तो ये सेंसर तुरंत चेतावनी भेजते हैं, जिससे समय रहते कार्रवाई की जा सके।
- स्वचालित मौसम एवं जल स्टेशन (AWWS): स्वचालित मौसम एवं जल स्टेशन (AWWS) मौसम संबंधी डेटा जैसे वर्षा, बर्फबारी और तापमान को इकट्ठा करते हैं। यह डेटा झील में पानी की मात्रा में होने वाले संभावित बदलावों की भविष्यवाणी करने में मदद करता है। जल स्तर के सेंसर के साथ मिलकर, ये स्टेशन बाढ़ की चेतावनी देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिससे समय पर निकासी संभव हो पाती है।
प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems – EWS): EWS GLOF आपदाओं से जान-माल के नुकसान को कम करने में महत्वपूर्ण हैं। इसमें झील के जल स्तर में अचानक वृद्धि या बांध के टूटने का पता चलने पर निचले इलाकों में रहने वाले समुदायों को तुरंत अलर्ट भेजने के लिए सेंसर, संचार नेटवर्क (जैसे साइरन, एसएमएस) और निकासी योजनाएँ शामिल होती हैं। भारत में NDMA ने GLOF EWS मिशन के तहत जोखिमग्रस्त झीलों के लिए EWS स्थापित करने पर काम शुरू किया है।
शमन रणनीतियाँ (Mitigation Strategies): GLOF जोखिमों को कम करने के लिए संरचनात्मक और गैर-संरचनात्मक दोनों उपायों की आवश्यकता है:
संरचनात्मक उपाय (Structural Measures)
- नियंत्रित जल निकासी (Controlled Drainage): इस विधि में, ग्लेशियल झील से पानी को नियंत्रित तरीके से बाहर निकालने के लिए साइफन, चैनल, या सुरंगों का निर्माण किया जाता है। ऐसा करने से झील में पानी का स्तर कम हो जाता है, जिससे मोरेन बांध पर दबाव घटता है। यह उपाय अचानक आने वाली GLOF (ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड) का जोखिम कम करता है।
- बांधों को मजबूत करना (Strengthening Dams): ग्लेशियल झीलों को घेरे हुए कमजोर मोरेन बांधों को इंजीनियरिंग तकनीकों का उपयोग करके मजबूत किया जाता है। इसमें बांध के ऊपर या अंदर पत्थर और सीमेंट जैसी सामग्री डालकर उसकी स्थिरता को बढ़ाना शामिल है। यह उपाय बांध के टूटने के खतरे को कम करता है, जिससे GLOF की संभावना कम होती है।
- स्पिलवे का निर्माण (Construction of Spillways): स्पिलवे एक प्रकार के चैनल होते हैं जो झील के अतिरिक्त पानी को सुरक्षित रूप से बाहर निकालने के लिए बनाए जाते हैं। ये बाढ़ जैसे हालातों में पानी को एक नियंत्रित रास्ते से बहने देते हैं, जिससे बांध पर अनावश्यक दबाव नहीं पड़ता। यह उपाय GLOF को रोकने में सहायक है।
गैर-संरचनात्मक उपाय (Non-Structural Measures)
- भूमि उपयोग योजना (Land-Use Planning): इस उपाय के तहत, ग्लेशियल झीलों के नीचे स्थित जोखिम वाले क्षेत्रों में इमारतों और बस्तियों के निर्माण पर प्रतिबंध लगाया जाता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि संभावित बाढ़ मार्ग में कोई आबादी या महत्वपूर्ण ढाँचा मौजूद न हो, जिससे बाढ़ के कारण होने वाले जान-माल के नुकसान को कम किया जा सके।
- आपदा तैयारी और क्षमता निर्माण (Disaster Preparedness and Capacity Building): यह उपाय स्थानीय समुदायों को GLOF से जुड़ी जोखिमों, प्रारंभिक चेतावनी संकेतों और निकासी की प्रक्रियाओं के बारे में शिक्षित करने पर केंद्रित है। समुदायों को प्रशिक्षित करने से वे बाढ़ के दौरान समय पर और सुरक्षित तरीके से अपनी और दूसरों की जान बचा सकते हैं।
- क्षेत्रीय सहयोग (Regional Cooperation): यह उपाय उन देशों के बीच सूचना साझाकरण और समन्वित कार्रवाई को बढ़ावा देता है जहाँ ग्लेशियर और नदियाँ सीमा पार करती हैं। एक-दूसरे के साथ डेटा, अनुभव और तकनीक साझा करके, ये देश सामूहिक रूप से GLOF के खतरों की बेहतर निगरानी और प्रबंधन कर सकते हैं।
चुनौतियाँ (Challenges): GLOFs की निगरानी और शमन में कई चुनौतियाँ हैं:
- दुर्गम इलाके (Inaccessible Terrain): उच्च हिमालयी क्षेत्रों में स्थित ग्लेशियल झीलें अक्सर दुर्गम और दूरदराज के इलाकों में होती हैं। इन स्थानों तक पहुँचना बहुत मुश्किल होता है। इस कारण से, इन झीलों की निगरानी करना और वहाँ पर शमन उपाय स्थापित करना एक बड़ी चुनौती बन जाती है, जिससे GLOF (ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड) का जोखिम और बढ़ जाता है।
- सीमित डेटा (Limited Data): कई हिमनद झीलों के बारे में हमारे पास दीर्घकालिक डेटा की कमी है। तापमान, वर्षा, जल स्तर और मोरेन बांध की स्थिरता से जुड़े विश्वसनीय और नियमित डेटा के अभाव में, जोखिम का सही आकलन करना और भविष्य की GLOF घटनाओं की भविष्यवाणी करना मुश्किल हो जाता है।
- उच्च लागत (High Cost): ग्लेशियल झीलों की निगरानी और शमन के लिए आवश्यक तकनीक और इंजीनियरिंग समाधान, जैसे सेंसर और जल निकासी प्रणालियाँ, बहुत महंगे होते हैं। इन प्रणालियों को स्थापित करना और बनाए रखना एक बड़ा आर्थिक बोझ होता है, खासकर विकासशील देशों के लिए, जिससे प्रभावी कार्यवाई में बाधा आती है।
- सीमा पार मुद्दे (Transboundary Issues): हिमालय की कई नदियाँ और ग्लेशियल झीलें सीमा पार स्थित हैं, जो एक से अधिक देशों को प्रभावित करती हैं। ऐसे मामलों में, प्रभावी निगरानी और शमन के लिए देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, सूचना साझाकरण और समन्वय की आवश्यकता होती है। यह सहयोग न होने पर आपदा प्रबंधन में जटिलताएँ आती हैं।
- स्थानीय समुदायों की भागीदारी (Community Involvement): GLOF के खतरे से निपटने के लिए स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी बहुत महत्वपूर्ण है। इन समुदायों के पारंपरिक ज्ञान और अनुभव का उपयोग करके प्रभावी प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ बनाई जा सकती हैं। उन्हें शिक्षित और सशक्त बनाने से वे आपदा के समय अपनी और दूसरों की जान बचाने में सक्षम होते हैं।
निष्कर्ष
ग्लेशियर झील फटने से बाढ़ (GLOFs) हिमालयी क्षेत्र के लिए एक गंभीर और बढ़ती हुई चुनौती है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण और भी विकराल रूप ले रही है। इन विनाशकारी घटनाओं से जान-माल का भारी नुकसान होता है और बुनियादी ढाँचा नष्ट हो जाता है। इस गंभीर खतरे का सामना करने के लिए एक समग्र, एकीकृत और बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाना अनिवार्य है। इसमें उन्नत निगरानी प्रौद्योगिकियों का उपयोग, प्रभावी प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों का विकास, संरचनात्मक और गैर-संरचनात्मक शमन उपायों का कार्यान्वयन, और सबसे महत्वपूर्ण रूप से, जलवायु परिवर्तन के मूल कारणों को संबोधित करना शामिल है। हिमालय की सुरक्षा सुनिश्चित करना और इसके निवासियों को इन आपदाओं से बचाना एक सामूहिक जिम्मेदारी है जिसके लिए तत्काल और निरंतर वैश्विक प्रयासों की आवश्यकता है।