प्रस्तावना:
अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में जब भारत के विभिन्न हिस्सों में क्षेत्रीय शक्तियाँ उभर रही थीं, उसी समय नेपाल के गोरखा शासकों ने भी अपनी शक्ति का विस्तार करना शुरू किया। 1790 के दशक में गोरखाओं ने उत्तराखंड (कुमाऊँ और गढ़वाल) पर आक्रमण किया और लंबे समय तक इस क्षेत्र पर प्रभुत्व बनाए रखा। यह आक्रमण केवल राजनीतिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन पर भी गहरा प्रभाव डालने वाला सिद्ध हुआ।
राजनीतिक प्रभाव और सत्ता परिवर्तन: गोरखा आक्रमण के परिणामस्वरूप कुमाऊँ और गढ़वाल की पारंपरिक राजसत्ता कमजोर हो गई। कुमाऊँ में चन्द वंश और गढ़वाल में पंवार वंश पहले से ही आंतरिक कलह और आर्थिक संकट का सामना कर रहे थे, जिसका लाभ उठाकर गोरखाओं ने इन क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार स्थानीय शासकों की राजनीतिक शक्ति समाप्त हो गई और गोरखा शासन ने यहाँ प्रत्यक्ष नियंत्रण स्थापित किया।
प्रशासनिक कठोरता और शोषण: गोरखा शासक अपने कठोर और सैन्यवादी प्रशासन के लिए जाने जाते थे। उन्होंने भारी कर व्यवस्था लागू की और स्थानीय जनता से जबरन श्रम (बेगारी) करवाया। कर वसूली और श्रम शोषण की इस नीति से जनता का जीवन अत्यंत कष्टमय हो गया। किसानों और ग्रामीण समाज को सबसे अधिक प्रभावित होना पड़ा, जिससे उनके जीवन-यापन की कठिनाइयाँ बढ़ गईं।
सामाजिक जीवन पर प्रभाव: गोरखा शासन की कठोर नीतियों का सीधा असर सामाजिक जीवन पर पड़ा। जनता में असुरक्षा और भय का वातावरण बना। परंपरागत सामाजिक संस्थाएँ और ग्राम पंचायतें कमजोर पड़ीं। बेगारी प्रथा के कारण समाज में असंतोष और विद्रोह की भावना बढ़ी। इस काल में उत्तराखंड के सामान्य जनजीवन में असमानता और असंतोष की स्थिति व्याप्त रही।
सांस्कृतिक और धार्मिक संस्थानों पर प्रभाव: गोरखाओं के कठोर शासन ने धार्मिक और सांस्कृतिक संस्थानों को भी प्रभावित किया। मंदिरों और धार्मिक स्थलों पर कर लगाए गए, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई। यद्यपि स्थानीय धार्मिक परंपराएँ समाप्त नहीं हुईं, परंतु उन पर शासन का दबाव बढ़ गया। इससे उत्तराखंड की सांस्कृतिक धारा में अव्यवस्था और असंतुलन पैदा हुआ।
दीर्घकालिक परिणाम और ब्रिटिश हस्तक्षेप: गोरखा आक्रमण और शासन ने उत्तराखंड को अस्थिर बना दिया, जिसके परिणामस्वरूप यहाँ की जनता ब्रिटिशों से मदद की अपेक्षा करने लगी। गोरखाओं और अंग्रेजों के बीच हुए अंग्रेज–गोरखा युद्ध (1814–1816) के बाद सुगौली संधि हुई, जिसके परिणाम स्वरुप कुमाऊँ और गढ़वाल ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन आ गए। इस प्रकार गोरखा शासन ने अप्रत्यक्ष रूप से उत्तराखंड में ब्रिटिश सत्ता की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया।
निष्कर्ष:
निष्कर्षतः, गोरखा आक्रमण उत्तराखंड के लिए राजनीतिक अस्थिरता, सामाजिक शोषण और सांस्कृतिक अव्यवस्था लेकर आया। यद्यपि गोरखाओं ने कुछ समय तक यहाँ पर अपना प्रभुत्व कायम रखा, लेकिन उनकी नीतियों ने जनता को असंतोष और विद्रोह की ओर प्रेरित किया। इस शासन का सबसे महत्त्वपूर्ण परिणाम यह रहा कि उत्तराखंड ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया और उसकी ऐतिहासिक धारा एक नए मोड़ पर पहुँच गई।