प्रस्तावना:
गढ़वाल का इतिहास कई छोटे-छोटे राज्यों यानी ‘गढ़ों’ से मिलकर बना है, जो 52 गढ़ों के रूप में प्रसिद्ध थे। इन बिखरे हुए गढ़ों को एकजुट करने और एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना का कार्य पंवार राजवंश ने किया। इस राजवंश का शासन सदियों तक चला और इसने गढ़वाल की राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान को आकार दिया।
स्थापना और प्रारंभिक शासक: पंवार राजवंश की स्थापना कनकपाल नामक एक परमार राजकुमार ने की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार, वे मालवा के धार नगर से तीर्थयात्रा पर आए थे। यहाँ उनकी भेंट चाँदपुर गढ़ी के तत्कालीन शासक भानूप्रताप से हुई, जिन्होंने अपनी बेटी का विवाह कनकपाल से कराया और उन्हें अपनी रियासत सौंप दी। इस प्रकार, 888 ईस्वी में कनकपाल ने चाँदपुर गढ़ी में पंवार राजवंश की नींव रखी।
राजनीतिक एकीकरण: पंवार वंश के प्रारंभिक शासकों ने अपनी शक्ति को धीरे-धीरे बढ़ाया, लेकिन गढ़वाल का वास्तविक एकीकरण 37वें शासक अजयपाल के शासनकाल में हुआ। अजयपाल ने 15वीं शताब्दी में सभी 52 गढ़ों को जीतकर एक शक्तिशाली गढ़वाल राज्य की स्थापना की। उन्होंने अपनी राजधानी चाँदपुर गढ़ी से देवलगढ़ और फिर श्रीनगर स्थानांतरित की, जो राज्य के लिए एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक और सामरिक केंद्र बन गया। अजयपाल के नेतृत्व में, गढ़वाल एक एकीकृत और मजबूत राज्य के रूप में उभरा।
प्रशासन और संस्कृति: पंवार राजवंश के शासकों ने न केवल राजनीतिक एकीकरण किया, बल्कि एक मजबूत प्रशासनिक व्यवस्था भी स्थापित की। उन्होंने भूमि सुधार, न्याय प्रणाली और सैन्य संगठन पर ध्यान दिया। इसके साथ ही, उन्होंने कला, साहित्य और धर्म को भी संरक्षण दिया। उनके शासनकाल में कई मंदिरों का निर्माण हुआ और गढ़वाली भाषा तथा संस्कृति का विकास हुआ। श्रीनगर शहर उनकी सांस्कृतिक राजधानी बन गया, जहाँ विद्वानों, कवियों और कलाकारों को शाही संरक्षण प्राप्त था।
निष्कर्ष:
संक्षेप में, कनकपाल ने 888 ईस्वी में चाँदपुर गढ़ी में पंवार राजवंश की नींव रखी, लेकिन इस राजवंश को सही पहचान और विस्तार अजयपाल ने दिया, जिन्होंने सभी 52 गढ़ों को एक कर एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना की। इस राजवंश ने न केवल गढ़वाल को राजनीतिक स्थिरता दी, बल्कि उसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को भी आकार दिया, जिसकी छाप आज भी इस क्षेत्र में दिखाई देती है।