प्रस्तावना:
रम्माण उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र, विशेष रूप से चमोली जिले के सल्याण-डुंगरा गाँव में मनाया जाने वाला एक अनूठा धार्मिक उत्सव है। यह पर्व केवल एक प्रदर्शन नहीं है, बल्कि यह अनुष्ठान, लोक रंगमंच, संगीत, और पारंपरिक नृत्य का एक अद्भुत संगम है। ‘रम्माण’ शब्द का अर्थ ‘रामायण’ से जुड़ा हुआ है, और यह भगवान राम के जीवन की कहानियों के साथ-साथ स्थानीय किंवदंतियों और लोक कथाओं का भी वर्णन करता है। इस उत्सव को इसकी विशिष्टता और सांस्कृतिक महत्व के कारण यूनेस्को द्वारा मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता दी गई है।
धार्मिक और अनुष्ठानिक स्वरूप: रम्माण में कई दिनों तक चलने वाले अनुष्ठान शामिल होते हैं। यह उत्सव भगवान राम की कहानियों पर केंद्रित है, लेकिन इसमें स्थानीय देवताओं और लोक नायकों से जुड़ी कहानियों को भी दर्शाया जाता है। यह पर्व ग्रामीणों के लिए अपनी आस्था और भक्ति को प्रकट करने का एक माध्यम है, और यह उन्हें अपनी धार्मिक जड़ों से जोड़े रखता है।
लोक रंगमंच और मुखौटा नृत्य: रम्माण का सबसे महत्वपूर्ण पहलू इसका लोक रंगमंच है, जिसमें कहानियों को मुखौटा नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है। कलाकार रंग-बिरंगे और विस्तृत मुखौटे पहनकर विभिन्न पात्रों, जैसे रामायण के पात्रों, जानवरों और स्थानीय देवताओं का अभिनय करते हैं। इन मुखौटों का निर्माण पारंपरिक रूप से किया जाता है, जो कला और शिल्प का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
सामुदायिक भागीदारी: रम्माण की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता पूरे समुदाय की सक्रिय भागीदारी है। इस उत्सव में हर परिवार और गाँव का हर व्यक्ति किसी न किसी रूप में शामिल होता है। कलाकार, संगीतकार और सहायक सभी गाँव के लोग ही होते हैं, जो अपनी भूमिकाओं को श्रद्धापूर्वक निभाते हैं। यह सामुदायिक भागीदारी इस परंपरा को जीवंत और स्थायी बनाए रखती है।
लोकगीत और संगीत: रम्माण में ढोल, दमाऊ और तुरही जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों का उपयोग होता है। इन वाद्य यंत्रों की थाप पर लोकगीत गाए जाते हैं, जिनमें कहानियों का वर्णन होता है। ये गीत कहानी को आगे बढ़ाते हैं और पूरे उत्सव में ऊर्जा और भावना भरते हैं। संगीत और नृत्य एक साथ मिलकर एक अद्भुत कलात्मक अनुभव प्रदान करते हैं।
यूनेस्को द्वारा मान्यता: 2009 में, यूनेस्को ने रम्माण को मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल किया। यह मान्यता इस बात का प्रमाण है कि यह उत्सव न केवल एक गाँव की परंपरा है, बल्कि यह वैश्विक सांस्कृतिक महत्व रखता है। यह मान्यता इस परंपरा को बचाने और संरक्षित करने के प्रयासों को प्रोत्साहित करती है।
निष्कर्ष:
रम्माण उत्सव उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का एक अनमोल रत्न है। यह एक ऐसा पर्व है जो कहानी कहने, नृत्य, संगीत और अनुष्ठानों के माध्यम से लोगों को उनकी जड़ों से जोड़ता है। यूनेस्को की मान्यता ने इस परंपरा को एक अंतर्राष्ट्रीय पहचान दी है, जिससे इसके संरक्षण के प्रयासों को बल मिला है और यह सुनिश्चित हुआ है कि यह अनूठी विरासत भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी जीवित रहे।
