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कुमाऊँ के किलों का रणनीतिक और सामरिक महत्व

प्रस्तावना:

उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में, चंद्र राजाओं ने कई महत्वपूर्ण किलों का निर्माण किया, जो उनकी स्थापत्य कला और सैन्य रणनीति को दर्शाते हैं। ये किले न केवल सुरक्षा के लिए बनाए गए थे, बल्कि प्रशासनिक केंद्र और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में भी कार्य करते थे। इन किलों में अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ और चंपावत में स्थित कई प्रसिद्ध संरचनाएँ शामिल हैं, जो आज भी उस युग के गौरवशाली इतिहास की गाथा सुनाती हैं।

अल्मोड़ा के किले: अल्मोड़ा में कई महत्वपूर्ण किले हैं, जिनमें से खगमरा किला राजा भीष्मचंद द्वारा बनवाया गया था, जो चंद्र वंश की प्रारंभिक राजधानी का हिस्सा था। लालमंडी किला, जिसे फोर्ट मोयरा भी कहा जाता है, का निर्माण 1563 में राजा कल्याणचंद ने किया था। यह किला बाद में ब्रिटिश शासन के दौरान एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक केंद्र बना। मल्ला महल किला भी कल्याणचंद द्वारा बनवाया गया था और आज इसमें सरकारी कार्यालय हैं। इसके अलावा, नैथड़ा किला और स्यलबुंगा जैसे अन्य किले भी अल्मोड़ा के इतिहास का हिस्सा हैं।

पिथौरागढ़ के किले: पिथौरागढ़ में स्थित किलों में गोरखा किला, सिमलगढ़ किला (जिसे लंदन फोर्ट भी कहा जाता है), और सीराकोट का किला प्रमुख हैं। ये किले मुख्य रूप से सुरक्षा और क्षेत्रीय नियंत्रण के लिए बनाए गए थे। सिमलगढ़ किला विशेष रूप से गोरखा शासन के दौरान अपनी रणनीतिक स्थिति के लिए जाना जाता था। इन किलों ने विभिन्न आक्रमणों के दौरान क्षेत्र की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

चंपावत के किले: चंपावत में चंद्र वंश का पहला किला राजबुंगा किला था, जिसका निर्माण राजा सोमचंद ने किया था। इसके अलावा, चारान उचार किला और चंडालकोट का किला भी इसी क्षेत्र में हैं। सिरमोही किला, जो लोहाघाट के पास सिरमोही गाँव में है, और गौल्लचौड़ किला, जिसका निर्माण राजा गोरिल ने कराया था, भी चंपावत के इतिहास का हिस्सा हैं। ये किले चंद्र राजाओं की शुरुआती राजधानी और उनके विस्तार को दर्शाते हैं।

बाणासुर किला और इसकी विशेषता: चंपावत का बाणासुर किला, जिसे कोटालगढ़ का किला भी कहते हैं, एक अनूठी संरचना है। यह लोहाघाट से 7 किमी दूर स्थित है और इसका निर्माण बाणासुर नामक राजा (दैत्य राज) ने कराया था, जैसा कि स्थानीय किंवदंतियों में कहा जाता है। इस किले की लंबाई 80 मीटर और चौड़ाई 20 मीटर है, जो इसे एक प्रभावशाली संरचना बनाती है। स्थानीय भाषा में इसे मारकोट के नाम से जाना जाता है।

निष्कर्ष:

इन किलों का निर्माण केवल युद्ध के लिए नहीं, बल्कि कुमाऊँ के चंद्र राजवंश की शक्ति, समृद्धि और सांस्कृतिक पहचान को स्थापित करने के लिए भी किया गया था। ये संरचनाएँ आज भी कुमाऊँ के गौरवशाली अतीत की याद दिलाती हैं। ये किले तत्कालीन वास्तुकला, जीवनशैली और राजनीतिक परिदृश्य को समझने में मदद करते हैं, और उत्तराखंड के ऐतिहासिक परिदृश्य का एक अभिन्न अंग हैं।

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