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कत्यूरी शासन काल में कर व्यवस्था

प्रस्तावना:

कत्यूरी शासकों का प्रशासन अत्यंत संगठित था और कर व्यवस्था उसका प्रमुख आधार थी। राजसत्ता को स्थायित्व प्रदान करने के लिए विभिन्न प्रकार के कर निर्धारित किए गए थे जिन्हें विशेष अधिकारियों के माध्यम से वसूला जाता था। इस व्यवस्था से न केवल राज्य की आर्थिक मजबूती सुनिश्चित होती थी बल्कि शासन और प्रजा के बीच एक अनुशासित संबंध भी बना रहता था।

कर वसूली के अधिकारी: कत्यूरी काल में करों की वसूली का कार्य भोगपति और शौल्किक जैसे अधिकारी संभालते थे। ये अधिकारी विभिन्न प्रकार के करों को जनता से लेकर राजा के खजाने तक पहुँचाते थे।

प्रजा से बेगार: करों के अलावा भट और चार-प्रचार नामक अधिकारी प्रजा से बेगार (बिना पारिश्रमिक कार्य) भी करवाते थे। इससे निर्माण कार्य और अन्य राज्यीय गतिविधियाँ सुचारु रूप से चलती थीं।

कृषि आधारित कर: राज्य की प्रमुख आय कृषि से होती थी। किसानों से भूमि कर वसूला जाता था जो बीज की बोवाई और भूमि की माप पर आधारित होता था।

खनिज और वन से आय: खण्डपति व खण्डरक्षास्थानाधिपति अधिकारी खनिज, वनों की रक्षा और संबंधित उद्योगों की व्यवस्था करते थे। यहाँ से प्राप्त राजस्व भी कर स्वरूप में खजाने में जाता था।

करों का महत्व: कर वसूलने की यह प्रणाली न केवल आर्थिक संसाधनों की स्थिरता सुनिश्चित करती थी बल्कि प्रशासनिक ढांचे और सेना के संचालन के लिए भी धन उपलब्ध कराती थी।

कठोर लेकिन संगठित व्यवस्था: कत्यूरी कर व्यवस्था में कभी-कभी कठोरता देखने को मिलती थी, किंतु साथ ही उसकी संगठनात्मक क्षमता यह दर्शाती है कि राज्य प्रजा की जिम्मेदारी और अपने सामर्थ्य दोनों को संतुलित करता था।

निष्कर्ष:

कत्यूरी कर व्यवस्था से स्पष्ट है कि शासन की आर्थिक आधारशिला करों पर टिकी थी। यह व्यवस्था मजबूत और संगठित थी तथा कृषि, खनिज और वनों से प्राप्त धन पर आधारित होकर राजसत्ता की मजबूती सुनिश्चित करती थी।

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