Rankers Domain

कत्यूरी वंश का पतन और राजनीतिक सत्ता के विखंडन

प्रस्तावना:

कत्यूरी वंश (7वीं–11वीं शताब्दी ई.) उत्तराखंड के इतिहास का सबसे प्राचीन और शक्तिशाली राजवंश था, जिसकी राजधानी प्रारंभ में बैजनाथ (कार्तिकेयपुर) रही। इस वंश ने कुमाऊँ, गढ़वाल और नेपाल तक अपने प्रभाव का विस्तार किया। किंतु समय के साथ यह साम्राज्य आंतरिक कमजोरी, बाहरी आक्रमण और सामंती शक्तियों की वृद्धि के कारण धीरे-धीरे पतन की ओर बढ़ा। इसके परिणामस्वरूप कुमाऊँ में राजनीतिक विखंडन हुआ और अनेक छोटे-छोटे राज्यों का उदय हुआ।

सामंती शक्तियों का उदय: कत्यूरी साम्राज्य विस्तृत था और इसे शासित करने के लिए राजाओं ने स्थानीय सामंतों को अधिकार दिए। समय के साथ ये सामंत अधिक शक्तिशाली हो गए और केंद्र की सत्ता को चुनौती देने लगे। इसने कत्यूरी शासन की केंद्रीय सत्ता को कमजोर कर दिया और राज्य छोटे-छोटे हिस्सों में बँट गया।

आंतरिक कलह और उत्तराधिकार संघर्ष: कत्यूरी वंश के उत्तराधिकारियों के बीच निरंतर सत्ता संघर्ष चलता रहा। राजवंश की विभिन्न शाखाओं ने अलग-अलग क्षेत्रों पर अधिकार जमाना शुरू कर दिया। इस आंतरिक कलह ने प्रशासन को कमजोर किया और बाहरी आक्रमणकारियों के लिए रास्ता आसान कर दिया।

बाहरी आक्रमणों का दबाव: कत्यूरी राज्य हिमालयी मार्गों से जुड़े होने के कारण नेपाल, कश्मीर और गढ़वाल के आक्रमणकारियों के निशाने पर रहा। बाहरी आक्रमणों और संघर्षों ने कत्यूरी राजाओं की शक्ति को और भी क्षीण कर दिया।

आर्थिक संसाधनों की कमी: पर्वतीय भौगोलिक परिस्थितियों के कारण कृषि योग्य भूमि सीमित थी। लगातार युद्धों और सामंतों की बढ़ती स्वायत्तता के कारण राज्य की आय घट गई। मंदिर निर्माण और प्रशासनिक खर्चों ने भी आर्थिक बोझ बढ़ाया, जिससे राज्य का पतन और तेज हो गया।

कुमाऊँ में राजनीतिक विखंडन: कत्यूरी वंश के पतन के बाद कुमाऊँ में अनेक छोटे-छोटे राज्यों और कुलों का उदय हुआ। इससे राजनीतिक अस्थिरता और विखंडन बढ़ा। अंततः 13वीं–14वीं शताब्दी में चंद वंश का उदय हुआ, जिसने कुमाऊँ को पुनः एकीकृत करने का प्रयास किया।

निष्कर्ष:

कत्यूरी वंश का पतन केवल एक राजवंश का पतन नहीं था, बल्कि यह कुमाऊँ की राजनीतिक संरचना में बड़े परिवर्तन का संकेत था। सामंती शक्तियों का उदय, आंतरिक कलह, बाहरी आक्रमण और आर्थिक कमजोरियों ने इस वंश को कमजोर किया। इसके परिणामस्वरूप कुमाऊँ राजनीतिक रूप से विखंडित हो गया और एक लंबे समय तक छोटे-छोटे राज्यों में बँटा रहा। हालांकि, इसी विखंडन ने बाद में चंद वंश को उभरने और कुमाऊँ को एक नई दिशा देने का अवसर भी प्रदान किया।

Recent Posts