प्रस्तावना:
कत्यूरी वंश (7वीं से 11वीं शताब्दी ई.) उत्तराखंड के इतिहास का स्वर्णिम अध्याय माना जाता है। इस वंश ने कुमाऊँ और गढ़वाल के बड़े हिस्से पर शासन किया तथा अल्मोड़ा के निकट बैजनाथ (प्राचीन कार्तिकेयपुर) को अपनी राजधानी बनाया। पर्वतीय क्षेत्र में राज्य संचालन अपने आप में कठिन था, परंतु कत्यूरी राजाओं ने एक संगठित प्रशासनिक व्यवस्था विकसित कर राज्य को स्थायित्व और समृद्धि प्रदान की।
राजनीतिक एवं केंद्रीय प्रशासन: कत्यूरी राजाओं ने अपने शासन को केंद्रीकृत रूप देने का प्रयास किया। राजा को सर्वोच्च माना जाता था, जिसके पास सैन्य, न्यायिक और धार्मिक सभी अधिकार निहित थे। उन्होंने छोटे-छोटे भूभागों को सामंतों और स्थानीय मुखियाओं को सौंपा, जो राजस्व वसूलते और प्रशासनिक कार्य देखते थे। इस प्रकार एक अर्ध-सामंती प्रशासनिक ढाँचा विकसित हुआ, जो पहाड़ी परिस्थितियों में व्यावहारिक सिद्ध हुआ।
राजस्व व्यवस्था: कत्यूरी शासकों की राजस्व व्यवस्था मुख्यतः कृषि और पशुपालन पर आधारित थी। किसानों से भूमि कर लिया जाता था तथा ऊन, नमक और धान जैसे उत्पादों पर कर वसूला जाता था। चूँकि यह राज्य तिब्बत और तराई क्षेत्रों से जुड़ा था, इसलिए व्यापारिक मार्गों से भी राजस्व प्राप्त होता था। यह राजस्व व्यवस्था राज्य की आर्थिक रीढ़ बनी और प्रशासनिक खर्च व मंदिर निर्माण कार्यों में उपयोग हुई।
न्यायिक प्रणाली: राजा न्याय का सर्वोच्च स्रोत माना जाता था। स्थानीय स्तर पर गाँवों में पंचायत जैसी संस्थाएँ विवादों का निपटारा करती थीं। गंभीर मामलों को राजा या उसके प्रतिनिधि द्वारा हल किया जाता था। न्याय व्यवस्था धर्मशास्त्रों और प्रचलित रीति-रिवाजों पर आधारित थी, जिससे सामाजिक सामंजस्य बना रहा।
धार्मिक एवं सांस्कृतिक संरक्षण: कत्यूरी राजाओं ने अपने प्रशासन को धार्मिक आधार भी प्रदान किया। उन्होंने बैजनाथ, जागेश्वर और कत्यूरी क्षेत्र के अनेक मंदिरों का निर्माण कराया। इन मंदिरों से न केवल धार्मिक जीवन को बढ़ावा मिला बल्कि सांस्कृतिक एकता भी स्थापित हुई। प्रशासनिक स्थायित्व ने कला, मूर्तिकला और शिल्प को भी संरक्षित किया।
पर्वतीय राज्य के संचालन में प्रभावशीलता: पर्वतीय भौगोलिक परिस्थितियों—जैसे ऊँचे पर्वत, संकरे मार्ग और सीमित कृषि भूमि—के बावजूद कत्यूरी राजाओं ने राजस्व, रक्षा और प्रशासन में संतुलन बनाया। सामंती ढाँचे और धार्मिक एकता के कारण समाज में स्थिरता बनी रही। हालांकि बाद में सामंतों की बढ़ती शक्ति और बाहरी आक्रमणों ने कत्यूरी शासन को कमजोर किया।
निष्कर्ष:
कत्यूरी राजाओं की प्रशासनिक व्यवस्था ने पर्वतीय राज्य संचालन की चुनौतियों को प्रभावी ढंग से संभाला। केंद्रीकृत सत्ता, सामंती ढाँचा, न्यायिक परंपरा, राजस्व व्यवस्था और सांस्कृतिक संरक्षण के माध्यम से उन्होंने एक मजबूत आधारशिला रखी। यद्यपि समय के साथ यह व्यवस्था कमजोर पड़ गई, फिर भी कत्यूरी वंश उत्तराखंड की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक धरोहर का स्वर्णिम प्रतीक बना हुआ है।