प्रस्तावना:
कत्यूरी राज्य विशाल भूभाग में विस्तृत था, इसलिए शासन को प्रांतीय स्तर पर विभाजित कर प्रशासन चलाना आवश्यक था। इस व्यवस्था ने शासकों को न केवल मजबूत स्थानीय नियंत्रण दिया बल्कि जनता को संगठित संरचना के अंतर्गत शासन का अनुभव भी कराया।
प्रान्तीय विभाजन: कत्यूरी राज्य को अनेक प्रान्तों में बांटा गया था। प्रत्येक प्रान्त का शासन उपरिक (राज्यपाल) के हाथ में होता था।
आयुक्त और विषयपति: उपरिक के अधीन आयुक्तक काम करते थे जो प्रान्त के विभिन्न भागों का संचालन करते थे। प्रत्येक प्रान्त को विषयों में बांटा गया था जिनका सर्वोच्च अधिकारी विषयपति कहलाता था।
प्रमुख प्रान्त/विषय: कत्यूरी शासन से चार प्रमुख विषय और एक लोकगाथा द्वारा ज्ञात विषय मिलते हैं – कार्तिकेयपुर, टंकणपुर, अन्तराग, एशाल विषय तथा मायापुरहाट।
स्थानीय इकाई: गाँव को पल्लिका कहा जाता था और उसका प्रमुख महत्तम होता था, जबकि तहसील स्तर पर अधिकारी कुलचारिक के नाम से जाना जाता था।
सीमांत प्रदेशों की देखरेख: सीमा क्षेत्रों में प्रान्तपाल तथा वर्मपाल जैसे अधिकारी तैनात रहते थे, जो सुरक्षा और आवागमन की निगरानी करते थे।
व्यवस्था की विशेषता: इस सम्पूर्ण प्रांतीय व्यवस्था में ऊपर से लेकर नीचे तक अधिकारियों का मजबूत ढाँचा स्पष्ट दिखाई देता है, जिससे शासन प्रभावी और अनुशासित बना रहा।
निष्कर्ष:
कत्यूरी शासन की प्रांतीय प्रशासनिक संरचना यह दर्शाती है कि उनका राज्य पूर्णतः संगठित था। प्रत्येक स्तर पर अधिकारियों की नियुक्ति कर प्रजा के जीवन को नियंत्रित और सुरक्षित रखा जाता था। इस कारण यह प्रणाली तत्कालीन उत्तराखंड के प्रशासनिक ढांचे का आदर्श उदाहरण कही जा सकती है।