प्रस्तावना:
कत्यूरी राजवंश उत्तराखण्ड के इतिहास में एक गौरवशाली अध्याय रहा है। उनके प्रशासनिक ढांचे में विभिन्न पदाधिकारी नियुक्त किए जाते थे, जिनका उद्देश्य शासन को सुचारु रूप से चलाना और राजा को सहयोग देना था। इन अधिकारियों की व्यवस्था से यह स्पष्ट होता है कि कत्यूरी शासक न केवल सैन्य बल पर निर्भर थे, बल्कि प्रशासनिक दक्षता के बल पर भी अपने राज्य का संचालन करते थे।
राजात्मय: कत्यूरी प्रशासन का सबसे महत्वपूर्ण पद था। यह राजा का प्रधान सलाहकार होता था और समय – समय पर राजनीतिक, सामाजिक और प्रशासनिक निर्णयों में उसे मार्गदर्शन देता था।
महासामन्त: यह सेना का प्रमुख अधिकारी था। इसके अधीन पूरी सेना रहती थी और युद्ध समय में यह मुख्य सेनानायक की भूमिका अदा करता था।
महाकरतृतिका: इसका कार्य मुख्यतः निरीक्षण करना था। इसे आधुनिक काल के मुख्य ओवरसियर की तरह माना जा सकता है। इसका दायित्व था कि राजा के आदेशों और निर्माण कार्यों की उचित निगरानी करे।
उदाधिला और सौदाभंगाधिकृत: उदाधिला राज्य में सुपरिटेन्डेण्ट जैसा कार्य करता था, जबकि सौदाभंगाधिकृत राजकीय निर्माणों का मुख्य वास्तुकार था। इसका कार्य महलों, मंदिरों और दुर्गों की रूपरेखा तय करना था।
सीमा एवं सुरक्षा के अधिकारी: प्रान्तपाल राज्य की सीमाओं का प्रहरी था। इसके अतिरिक्त वर्मपाल सीमाओं पर आने-जाने वालों पर निगरानी करता था, जबकि घट्पाल पर्वतीय दर्रों की सुरक्षा में लगा रहता था।
नरपति और ग्राम प्रशासन: नरपति नदी घाटों पर मार्ग को सुरक्षित बनाता और संदिग्ध व्यक्तियों की जांच करता था। गाँव स्तर पर पल्लिका नामक इकाई थी, जिसका प्रमुख महत्तम कहलाता था। इससे स्पष्ट है कि कत्यूरी प्रशासन जमीनी स्तर तक संगठित था।
निष्कर्ष:
कत्यूरी कालीन पदाधिकारियों की संरचना से यह प्रमाणित होता है कि उनका प्रशासनिक ढाँचा काफी संगठित और व्यवस्थित था। प्रत्येक अधिकारी को स्पष्ट भूमिकाएँ दी जाती थीं, जिससे शासन पारदर्शी और प्रभावी बन पाता था।