प्रस्तावना:
उत्तराखंड के इतिहास में कत्यूरी वंश (7वीं–11वीं शताब्दी) को कला, स्थापत्य और संस्कृति के उत्कर्ष का युग माना जाता है। इस वंश ने न केवल राजनीतिक रूप से कुमाऊँ और गढ़वाल को एकीकृत किया, बल्कि मंदिर निर्माण के माध्यम से एक अद्वितीय स्थापत्य धरोहर भी छोड़ी। बैजनाथ और जागेश्वर मंदिर समूह कत्यूरी राजाओं की स्थापत्य कला के श्रेष्ठ उदाहरण हैं, जो आज भी उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान बने हुए हैं।
बैजनाथ मंदिर समूह का निर्माण: कत्यूरी शासकों ने 9वीं शताब्दी में अलकनंदा और गोमती नदी के संगम पर बैजनाथ (प्राचीन कार्तिकेयपुर) को अपनी राजधानी बनाया। यहाँ लगभग 18 मंदिरों का समूह निर्मित हुआ, जिनमें भगवान शिव को समर्पित मुख्य मंदिर है। यह मंदिर शिखर शैली में निर्मित है, जिसमें ग्रेनाइट पत्थरों का प्रयोग किया गया है। इसकी स्थापत्य शैली उत्तर भारतीय नागर शैली से प्रभावित होने के बावजूद स्थानीय कारीगरी की विशेष झलक दिखाती है।
जागेश्वर मंदिर समूह: जागेश्वर मंदिर समूह कत्यूरी काल की स्थापत्य कला का एक और महत्वपूर्ण उदाहरण है। यहाँ लगभग 125 छोटे-बड़े मंदिर हैं, जिनमें ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रसिद्ध महादेव मंदिर विशेष उल्लेखनीय है। इन मंदिरों की शिल्पकला में पत्थर पर की गई सूक्ष्म नक्काशी, गर्भगृह और मंडप की रचना तथा शिखर का ऊर्ध्वमुखी स्वरूप अत्यंत प्रभावशाली है। यह समूह न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था बल्कि तीर्थयात्रा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का केंद्र भी बना।
स्थापत्य शैली और शिल्पकला: कत्यूरी स्थापत्य की विशेषता है—नागर शैली का स्थानीय रूपांतर, जिसमें ऊँचे शिखर, चतुर्भुज गर्भगृह और संकरे द्वार प्रमुख हैं। मंदिर निर्माण में ग्रेनाइट तथा स्थानीय पत्थरों का उपयोग हुआ। द्वारों और स्तंभों पर की गई मूर्तिकला—गणेश, विष्णु, देवी-देवताओं और अप्सराओं की प्रतिमाएँ—कत्यूरी काल की कलात्मक उत्कृष्टता को दर्शाती हैं।
धार्मिक और सांस्कृतिक योगदान: इन मंदिरों के माध्यम से कत्यूरी शासकों ने न केवल धार्मिक जीवन को संगठित किया, बल्कि समाज में सांस्कृतिक एकता भी स्थापित की। बैजनाथ और जागेश्वर दोनों ही तीर्थस्थल हिमालयी क्षेत्र को उत्तर भारत के अन्य धार्मिक केंद्रों से जोड़ते थे। इस प्रकार ये मंदिर राजनीति, धर्म और संस्कृति—तीनों स्तरों पर क्षेत्रीय पहचान का आधार बने।
स्थायित्व और विरासत: यद्यपि कत्यूरी वंश का राजनीतिक प्रभाव 11वीं शताब्दी के बाद क्षीण हो गया, परंतु उनके द्वारा निर्मित मंदिर आज भी उत्तराखंड की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक बने हुए हैं। इन मंदिरों की संरचना ने आने वाले काल में चंद और परमार शासकों की स्थापत्य परंपरा को भी प्रभावित किया।
निष्कर्ष:
कत्यूरी शासकों की स्थापत्य कला ने पर्वतीय भूगोल की कठिनाइयों को चुनौती देते हुए एक सुदृढ़ सांस्कृतिक धरोहर रची। बैजनाथ और जागेश्वर मंदिर न केवल धार्मिक केंद्र रहे, बल्कि कला, संस्कृति और स्थापत्य कौशल की अद्वितीय उपलब्धियाँ भी हैं। ये मंदिर आज भी उत्तराखंड की पहचान, उसकी ऐतिहासिक गरिमा और आध्यात्मिक परंपरा के जीवंत प्रतीक बने हुए हैं।