प्रस्तावना:
उत्तराखंड का इतिहास हिमालय की भौगोलिक स्थिति और उसकी सामरिक स्थिति से गहराई से जुड़ा है। विशेषकर कत्युरी वंश (7वीं–11वीं शताब्दी ई.) के शासनकाल में यह क्षेत्र भारत के मैदानी भागों और तिब्बत के बीच एक महत्त्वपूर्ण सेतु के रूप में उभरा। कत्युरी शासकों ने अपनी भौगोलिक स्थिति का उपयोग न केवल राजनीतिक शक्ति को बढ़ाने में किया बल्कि व्यापार, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी लाभ उठाया। इस काल में उत्तराखंड की भू-सामरिक स्थिति ने इसे उत्तर भारत की राजनीति और अर्थव्यवस्था का अभिन्न हिस्सा बना दिया।
तिब्बत और भारत के मैदानी भागों के बीच व्यापारिक मार्ग: कत्युरी शासनकाल में उत्तराखंड हिमालयी व्यापारिक मार्गों का केंद्र था। तिब्बत से ऊन, नमक और पशु उत्पाद भारत के मैदानी भागों तक पहुँचते थे, जबकि मैदानों से अन्न, मसाले और वस्त्र तिब्बत भेजे जाते थे। कत्युरी शासकों ने इन व्यापारिक मार्गों को सुरक्षित बनाकर राजस्व प्राप्त किया और राज्य की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ किया। इससे उत्तराखंड व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का केंद्र बन गया।
सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थिति: उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति इसे एक सामरिक चौकी बनाती थी। कत्युरी शासकों ने अपनी सीमाओं को तिब्बत और नेपाल की ओर तक विस्तारित कर क्षेत्रीय सुरक्षा सुनिश्चित की। यह स्थिति उन्हें बाहरी आक्रमणों से बचाने और मैदानी क्षेत्रों पर नियंत्रण बनाए रखने में सहायक रही। पर्वतीय दुर्गम मार्गों और घाटियों ने प्राकृतिक सुरक्षा कवच का कार्य किया।
सांस्कृतिक आदान-प्रदान का केंद्र: तिब्बत और मैदानों के बीच स्थित होने के कारण उत्तराखंड सांस्कृतिक आदान-प्रदान का भी केंद्र बना। बौद्ध, शैव और वैष्णव धर्मों का यहाँ परस्पर प्रभाव पड़ा। कत्युरी शासकों के संरक्षण में बैजनाथ मंदिर समूह जैसे स्थापत्य के प्रतिमान निर्मित हुए, जिनमें भारतीय और हिमालयी सांस्कृतिक प्रभाव का समन्वय स्पष्ट दिखाई देता है।
राजनीतिक प्रभुत्व और क्षेत्रीय स्थिरता: भू-सामरिक महत्त्व ने कत्युरी शासकों को क्षेत्रीय राजनीति में प्रभुत्व स्थापित करने का अवसर दिया। उन्होंने नेपाल और तिब्बत की सीमाओं तक अपनी शक्ति पहुँचाई और मैदानी राजाओं से संबंध बनाए। इस रणनीतिक स्थिति के कारण कत्युरी साम्राज्य लंबे समय तक उत्तराखंड में प्रमुख राजनीतिक शक्ति बना रहा और क्षेत्रीय स्थिरता स्थापित कर सका।
दीर्घकालिक प्रभाव: कत्युरी काल की भू-सामरिक नीतियों ने उत्तराखंड की राजनीतिक और आर्थिक पहचान को स्थायी रूप से प्रभावित किया। उनके द्वारा नियंत्रित व्यापारिक मार्ग और सांस्कृतिक परंपराएँ आगे चलकर चन्द और परमार शासकों के लिए भी आधार बनीं। इस स्थिति ने उत्तराखंड को हिमालयी राजनीति और भारतीय उपमहाद्वीप की कूटनीति का महत्त्वपूर्ण हिस्सा बना दिया।
निष्कर्ष:
निष्कर्षतः, कत्युरी शासनकाल में उत्तराखंड की स्थिति तिब्बत और भारत के मैदानों के बीच एक सेतु के रूप में अत्यंत महत्त्वपूर्ण रही। व्यापारिक मार्गों का नियंत्रण, सामरिक सुरक्षा, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और राजनीतिक प्रभुत्व ने इस क्षेत्र को न केवल क्षेत्रीय बल्कि अंतर-क्षेत्रीय स्तर पर भी महत्त्वपूर्ण बना दिया। इस प्रकार उत्तराखंड का भू-सामरिक महत्त्व कत्युरी काल में अपने चरम पर पहुँच गया और उसने क्षेत्र की ऐतिहासिक धारा को गहराई से प्रभावित किया।