प्रस्तावना:
उत्तराखंड का इतिहास अपनी विविध सांस्कृतिक परंपराओं और राजनीतिक घटनाक्रमों के लिए प्रसिद्ध है। मध्यकालीन समय में यहाँ कई शक्तिशाली राजवंशों ने शासन किया, जिनमें कत्युरी वंश विशेष रूप से उल्लेखनीय है। कत्युरी शासकों ने सातवीं शताब्दी से ग्यारहवीं शताब्दी तक उत्तराखंड के कुमाऊँ और गढ़वाल क्षेत्र में अपना प्रभाव स्थापित किया। इस वंश ने न केवल राजनीतिक दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक और आर्थिक स्तर पर भी क्षेत्र को एक नई पहचान दी।
उत्पत्ति और स्थापना: कत्युरी वंश की उत्पत्ति को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ इतिहासकार इन्हें कुनिंदों और नागवंशियों से जोड़ते हैं, जबकि अन्य के अनुसार ये शालिवाहन क्षत्रियों की शाखा थे। इस वंश की स्थापना का श्रेय वसुदेव कत्युरी को दिया जाता है। उनकी राजधानी बैकुंठपुरी (वर्तमान बागेश्वर क्षेत्र) मानी जाती है। धीरे-धीरे राजधानी को बदलकर जोशीमठ और बाद में कार्तिकेयपुर (कत्यूर घाटी) में स्थापित किया गया।
उदय और राजनीतिक विस्तार: कत्युरी शासकों ने उत्तराखंड के पर्वतीय अंचलों को एक राजनीतिक इकाई के रूप में संगठित किया। वसुदेव के उत्तराधिकारी दुर्लभदेव और वृद्धचंद्रदेव जैसे शासकों ने साम्राज्य का विस्तार किया। इनके अधीन कत्युरी साम्राज्य कुमाऊँ, गढ़वाल और कर्नाली नदी घाटी से लेकर नेपाल के पश्चिमी हिस्सों तक फैला था। इस वंश के शासकों ने कई छोटे-छोटे राज्यों और जनजातियों को अपने नियंत्रण में लाकर साम्राज्य विस्तार की परंपरा की नींव रखी।
सांस्कृतिक और धार्मिक योगदान: कत्युरी वंश ने उत्तराखंड के सांस्कृतिक इतिहास में स्वर्णिम अध्याय जोड़ा। उनके शासनकाल में अनेक मंदिरों का निर्माण हुआ, जिनमें बैजनाथ का शिव मंदिर समूह विशेष प्रसिद्ध है। ये मंदिर शिल्पकला और स्थापत्य के अद्भुत उदाहरण हैं, जिनसे तत्कालीन समाज की धार्मिकता और कला प्रेम का पता चलता है। कत्युरी शासकों ने शैव, शाक्त और वैष्णव सभी धर्म पंथों को संरक्षण दिया।
राजनीतिक परिदृश्य में भूमिका: कत्युरी साम्राज्य ने उत्तराखंड को राजनीतिक रूप से संगठित करने का कार्य किया। इनके शासनकाल में व्यापार मार्ग विकसित हुए, जिससे कुमाऊँ और गढ़वाल का संपर्क तिब्बत और नेपाल जैसे पड़ोसी क्षेत्रों से हुआ। इससे क्षेत्र की आर्थिकी सुदृढ़ हुई और कत्युरी शासकों की शक्ति बढ़ी। ग्यारहवीं शताब्दी के बाद आंतरिक कलह और बाहरी आक्रमणों के कारण कत्युरी वंश धीरे-धीरे क्षीण हो गया, जिसके परिणामस्वरूप छोटे-छोटे राजवंश जैसे चंद वंश और परमार वंश का उदय हुआ।
निष्कर्ष:
इस प्रकार कत्युरी वंश उत्तराखंड के प्रारम्भिक मध्यकालीन इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण अध्याय रहा। इसने न केवल राजनीतिक एकता स्थापित की, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर भी छोड़ी। उनके द्वारा निर्मित मंदिर, शिलालेख और स्थापत्य कला आज भी उनकी गौरवशाली परंपरा के प्रतीक हैं। यद्यपि अंततः उनका पतन हुआ, परंतु कत्युरी वंश ने उत्तराखंड की पहचान और उसकी ऐतिहासिक धारा को दिशा देने में अमूल्य योगदान दिया।
