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औपनिवेशिक काल में टिहरी रियासत के गठन और गढ़वाल की राजनीतिक दिशा

प्रस्तावना:

गढ़वाल क्षेत्र का इतिहास सदैव राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा है। 19वीं शताब्दी की शुरुआत में गोरखा आक्रमण और उसके पश्चात ब्रिटिश हस्तक्षेप ने गढ़वाल की राजनीतिक स्थिति को बदल दिया। इसी पृष्ठभूमि में टिहरी रियासत का गठन हुआ, जिसने औपनिवेशिक काल के दौरान गढ़वाल की राजनीति और सामाजिक संरचना को विशेष रूप से प्रभावित किया।

टिहरी रियासत का गठन और स्वरूप: 1815 में गोरखा पराजय के बाद, ब्रिटिशों ने गढ़वाल के कुछ हिस्सों को अपने प्रत्यक्ष शासन में ले लिया और शेष क्षेत्र में राजा सुदर्शन शाह को टिहरी रियासत स्थापित करने की अनुमति दी। यह राज्य गढ़वाल के पूर्वी और मध्य भागों में फैला हुआ था, जिसका केंद्र टिहरी बना। इस प्रकार, गढ़वाल का एक बड़ा हिस्सा ब्रिटिश शासन के अधीन चला गया और एक भाग रियासत के रूप में विकसित हुआ।

राजनीतिक संरचना और ब्रिटिश प्रभाव: टिहरी रियासत ब्रिटिश साम्राज्य के अधीनस्थ राज्य के रूप में कार्य करती थी। यहाँ का राजा आंतरिक मामलों में स्वतंत्र था, किंतु बाहरी नीति और सामरिक मामलों में ब्रिटिश हस्तक्षेप स्पष्ट था। रियासत की राजनीतिक दिशा ब्रिटिश हितों के अनुरूप ढल गई, जिससे स्थानीय स्वायत्तता सीमित रही।

शासन और प्रशासनिक चुनौतियाँ: टिहरी रियासत को प्रशासनिक दृष्टि से कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। दुर्गम भौगोलिक स्थिति, सीमित संसाधन और जनता पर करों का बोझ शासन को कठिन बनाते थे। यद्यपि राजा ने प्रशासनिक सुधारों का प्रयास किया, किंतु जनता की असंतोष की आवाज़ समय-समय पर सामने आती रही।

सामाजिक-राजनीतिक प्रभाव: रियासत के गठन ने गढ़वाल की राजनीतिक एकता को दो भागों में बाँट दिया— एक ओर ब्रिटिश शासित गढ़वाल और दूसरी ओर टिहरी रियासत। इससे गढ़वाल की सामूहिक राजनीतिक पहचान कमजोर हुई। हालांकि, रियासत ने स्थानीय सांस्कृतिक परंपराओं और धार्मिक संस्थानों को संरक्षण भी दिया।

स्वतंत्रता आंदोलन और टिहरी का स्थान: औपनिवेशिक काल में टिहरी रियासत स्वतंत्रता आंदोलन से भी अछूती नहीं रही। टिहरी की जनता ने भी ब्रिटिश और रियासती शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई। 20वीं शताब्दी में टिहरी राज्य प्रजामंडल आंदोलन के माध्यम से जनता ने लोकतांत्रिक अधिकारों की माँग की, जिसने गढ़वाल की राजनीति को स्वतंत्रता संघर्ष से सीधे जोड़ा।

निष्कर्ष:

टिहरी रियासत का गठन गढ़वाल की राजनीतिक दिशा को औपनिवेशिक काल में गंभीरता से प्रभावित करने वाला कदम था। इसने गढ़वाल को दो राजनीतिक इकाइयों में बाँटा, जहाँ एक भाग ब्रिटिश शासन के अधीन और दूसरा रियासती नियंत्रण में रहा। यद्यपि इस विभाजन ने गढ़वाल की एकता को कमजोर किया, लेकिन टिहरी रियासत ने सांस्कृतिक परंपराओं को संरक्षित रखा और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान प्रजामंडल आंदोलन के माध्यम से गढ़वाल की जनता को राष्ट्रीय धारा से जोड़ा। इस प्रकार, टिहरी रियासत गढ़वाल के औपनिवेशिक इतिहास की एक निर्णायक कड़ी सिद्ध हुई।

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