परिचय
उत्तराखंड, जो भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर में स्थित है, प्राचीन संस्कृति, इतिहास और धार्मिक महत्व का एक अद्भुत स्थल है। यह राज्य न केवल प्राकृतिक सुंदरता का धनी है, बल्कि यहां कई महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थलों की खोज भी की गई है। ये स्थल सभ्यता के विकास, धार्मिक अनुष्ठानों और मानव सभ्यता के प्रारंभिक रूपों के महत्वपूर्ण गवाह हैं।
उत्तराखंड के प्रमुख पुरातात्विक स्थल
केंद्रिय संरक्षण वाले स्थल (ASI द्वारा खुदाई किए गए)
काशीपुर, जिला उद्यम सिंह नगर
काशीपुर, जो ए. कनिंघम द्वारा “कियु-पि-श्वांग-ना” के रूप में पहचाना गया, प्राचीन इतिहास में महत्वपूर्ण है। यहां 1939-40, 1965-66 और 1970-01 के दौरान किया गया खुदाई कार्य इस स्थल के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को उजागर करता है। इस दौरान, एक बड़े मंदिर का अवशेष मिला जिसे तीन चरणों में विकसित किया गया। प्रारंभ में यह एक मिट्टी की ईंटों का ऊंचा मंच था, जो बाद में 6वीं-7वीं शताब्दी के दौरान एक विस्तृत पंचायत परिसर में परिवर्तित हो गया। यहाँ से मिले बर्तनों और अन्य पुरातात्विक वस्तुओं ने इस स्थल के लंबे समय तक स्थायी रहने का संकेत दिया है और यह प्रमाणित किया है कि यह स्थान प्राचीन समय से विभिन्न संस्कृतियों का केंद्र रहा है।
वीरभद्र ऋषिकेश, जिला हरिद्वार
इस स्थल पर 1973-75 में ए. एन. घोष द्वारा खुदाई के दौरान महत्वपूर्ण सांस्कृतिक चरणों की पहचान की गई। यहां के अवशेषों से स्पष्ट होता है कि यहां तीन प्रमुख काल थे। पहले चरण में 1 से 3 शताब्दी ईस्वी के बीच मिट्टी की दीवारें तथा मध्य चरण में 4 से 5 शताब्दी में एक शिव मंदिर का अवशेष मिला। अंतिम चरण 7वीं से 8वीं शताब्दी के बीच स्थित आवासीय स्वरूप का संकेत देता है।
जगत ग्राम, जिला देहरादून
जगत ग्राम की खुदाई 1952-54 के दौरान की गई, जिसमें तीन अग्नि वेदियों के अवशेष और ईंटों पर संस्कृत में लेखन मिला। यह स्थल अश्वमेध यज्ञ के लिए महत्वपूर्ण था, जो तात्कालिक राजा सिलावर्मन द्वारा किया गया था। यहां के अवशेष इस बात का प्रमाण हैं कि यज्ञ राज्य के पुनरुत्थान में बड़ी भूमिका निभाती थी। जगत ग्राम के अवशेष उस समय के पूजन अनुष्ठानों की भी जानकारी देते हैं।
अन्य संरक्षण वाले स्थल
पुरोला, जिला उत्तरकाशी
यह प्राचीन स्थल कमल नदी के किनारे स्थित है और इसकी खुदाई एच.एन.बी. गढ़वाल विश्वविद्यालय द्वारा की गई थी। इसे पहले से ही उच्च प्राचीनता का जाना जाता है। यहां से पेंटेड ग्रे वेयर सामग्री, मिट्टी के खिलौने, और ताम्र मुद्राएं मिलीं। सबसे महत्वपूर्ण खोज एक चूना पत्थर का यज्ञ वेदी था, जो उड़ते हुए गरुड़ के आकार में था। यह यज्ञ वेदी उस समय के धार्मिक अनुष्ठानों का संकेत देती है।
अन्य गैर-संरक्षित स्थल
थापली, जिला टिहरी
यहां की खुदाई 1982-83 में की गई थी, जिसमें पेंटेड ग्रेवेयर संस्कृति के धातु के बर्तन और संबंधित सामग्री मिली। यहाँ मिले अवशेषों ने यह दर्शाया कि मध्य हिमालय में इस संस्कृति की उपस्थिति रही है, जो पहले से अज्ञात थी। थापली के स्थल ने स्थानीय संस्कृति की विभिन्नताओं को उजागर किया और इसे प्राचीनता का प्रमाण माना गया।
मलेरी, जिला चमोली
यह स्थल 4000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और यहां की खुदाई ने मानव अवशेषों के साथ कई प्राचीन बर्तनों को भी उजागर किया। इस स्थल में दफन एक गुफा की खोज हुई थी, जो यह दर्शाती है कि उस समय की सांस्कृतिक पहचान के बारे में प्रमुख जानकारी मिलती है। गुफा में मिले तत्व जैसे सजावटी बर्तन और अन्य सामग्री ने स्थानीय जनसंख्या के धार्मिक और सांस्कृतिक क्रियाकलापों को समझने में मदद की।
अन्य महत्वपूर्ण खुदाई स्थल
लखामंडल, जिला देहरादून
यहां 2005-2007 के बीच की गई सफाई / उत्खनन ने 5वीं-6वीं शताब्दी के लघु मंदिरों के अवशेषों की पहचान की। यह खुदाई उत्तराखंड के मंदिर वास्तुकला में विभिन्नता को दर्शाती है और हिमालय क्षेत्र में इसके विकास को समझने में मदद करती है।
चंद्रपुर गढ़ी, खाल, जिला चमोली
यहां की सफाई / उत्खनन ने पारंपरिक निर्माण शैली को उजागर किया गया। इस क्षेत्र के राजा की प्राचीन राजधानी होने के नाते, यहां के आवासीय संरचना 14वीं-15वीं शताब्दी के जीवन को दर्शाते हैं।
चट्टान चित्र / चट्टानी आश्रय
चट्टान चित्र उत्तराखंड की प्रागैतिहासिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण भाग हैं। अल्मोड़ा जिले में पाए गए चट्टान चित्र और पेट्रोग्लिफ्स ने इस क्षेत्र के प्राचीन लोगों की कला और उनके जीवन शैली का एक अद्वितीय चित्रण प्रस्तुत किया है। ये चित्र ज्यामितीय पैटर्न, जीव-जंतुओं और सजावटी चित्रों को दर्शाते हैं। इन चित्रों ने चट्टान में उकेरे गए कई मानव आकृतियों का भी बारीकी से अध्ययन किया गया है, जो प्राचीन सभ्यता के व्यवहार को समझने में मददगार है।
निष्कर्ष
उत्तराखंड का पुरातात्विक धरोहर इस राज्य की सांस्कृति और ऐतिहासिकता को उजागर करता है। ये स्थल न केवल अतीत की कहानियों को सुनाते हैं, बल्कि आज के समाज को पुरानी विरासत और अनुष्ठानों की याद दिलाते हैं।
हालांकि, कई ऐसे स्थल हैं जो संरक्षण की कमी के कारण नष्ट हो रहे हैं। सरकार को चाहिए कि वह इन पुरातात्विक स्थलों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाए। साथ ही, इन स्थलों को वैश्विक स्तर पर प्रमोट किया जा सके ताकि पर्यटन में वृद्धि हो सके और उत्तराखंड की अद्वितीयता को संजोया जा सके।
उत्तराखंड के पुरातात्विक स्थल भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण टुकड़े हैं और इनकी सुरक्षा, अध्ययन और संरक्षण हमारे लिए न केवल एक जिम्मेदारी है, बल्कि यह हमारी पहचान का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है।