परिचय
उत्तराखंड का प्राचीन और समृद्ध संस्कृति यहाँ की विविध कलाओं के माध्यम से अभिव्यक्त होती है। यह राज्य भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और यहाँ की कलाएं, विशेष रूप से वास्तुकला, मूर्तिकला और मंदिर, इसके प्राचीन इतिहास और धार्मिक आस्था का दर्पण हैं।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
उत्तराखंड की कला का प्रारंभिक स्वरूप सबसे पहले यहाँ के प्राचीन स्थलों में देखी जा सकती है। कुणिंद (कुलिंद) वंश के राजा शीलवर्मन द्वारा किए गए अश्वमेध यज्ञों के प्रमाण कालसी के निकट जगतग्राम के स्थलों से प्राप्त हुए हैं। हालांकि इन स्थलों का अधिकांश हिस्सा अब नष्ट हो चुका है, परन्तु यहाँ से प्राप्त ईटों की गरुड़ाकार वैदिका की वास्तुकला अद्भुत है।
वास्तुकला
उत्तराखंड की वास्तुकला में विभिन्न शैलियों का संगम देखने को मिलता है। यहाँ के मंदिरों, भवनों और शिल्प कला में विभिन्न धार्मिक आस्थाओं का प्रभाव देखने को मिलता है। मुख्यतः यहाँ की वास्तुकला चार महत्वपूर्ण भागों में विभाजित की जा सकती है:
गरुड़ाकार वेदिका : गरुड़ाकार वेदिका की रचना में एक हजार ईंटों का प्रयोग किया जाता था, जिसको इस प्रकार से स्थापित किया जाता था कि वह उड़ता हुआ गरुड़ बन सके। यह वास्तुकला न केवल धार्मिक महत्त्व रखती है, बल्कि इसमें छिपा गणित और ज्यामिति भी आर्किटेक्चर के प्रति प्राचीन लोगों की गहरी समझ को दर्शाता है। जगतग्राम की यह वेदिका तीसरी शताब्दी के अन्त में बनाई गई मानी जाती है।
मंदिर वास्तुकला : उत्तराखंड के मंदिरों की वास्तुकला भी अति विशिष्ट है। यहाँ अनेक मंदिरों में पत्थरों की उत्कृष्ट नक्काशी नजर आती है। जैसे जागेश्वर, केदारनाथ, और हरिद्वार, जहाँ वास्तुकला में मंदिर वास्तुकला के विशिष्ट तत्व देखे जा सकते हैं। इन मंदिरों की छतें और दीवारें अद्भुत नक्काशी के साथ निर्मित हैं, जो दर्शाती हैं कि कारीगरों को उस समय की कला और संस्कृति की गहरी समझ थी।
जैन और बौद्ध वास्तुकला : हालाँकि यहाँ की प्रमुख धार्मिक धारा हिंदू धर्म की है, उत्तराखंड में जैन और बौद्ध धर्म से संबंधित कृतियों का भी समावेश है, जो कि अत्यंत दुर्लभ हैं। उनके निचले स्तर पर बौद्ध स्तूप और जैन मंदिर देखे जा सकते हैं, जो समाज में सामंजस्य और सहिष्णुता के प्रतीक हैं।
मूर्तिकला
उत्तराखंड की मूर्तिकला भी अद्वितीय है; यहाँ प्राचीन मंदिरों में जो मूर्तियाँ हैं, वे न केवल धार्मिक महत्त्व रखती हैं, बल्कि उनकी शैली और रचना भी अद्भुत है। मूर्तियों के निर्माण में विभिन्न धर्मों का प्रभुत्व देखने को मिलता है।
धार्मिक मूर्तियाँ
उत्तराखंड में विशेष रूप से, शैव और वैष्णव धर्म से संबंधित अनेक मूर्तियाँ पाई जाती हैं। प्राचीन मूर्तिकला को समझने के लिए हमें कुछ प्रमुख मूर्तियों पर ध्यान देना होगा।
शैव संप्रदाय से संबंधित मूर्तियाँ : जागेश्वर के मंदिर में शिव की मूर्तियाँ, जिसमें शिव का त्रिरूप प्रमुख है, यहाँ की प्रसिद्ध मूर्तियों में से एक है। इसके अतिरिक्त नटराज के रूप में शिव की मूर्ति भी यहाँ की शिल्प कला की विशेषता है। केदारनाथ मंदिर में वज्रासन मुद्रा में शिव की मूर्ति इस क्षेत्र की शिल्पकला की महानता को दर्शाती है।
शैव मूर्तियों के उदाहरण
जागेश्वर की मूर्ति: शिव का त्रिरूप और नृत्य मुद्रा में शिव की मूर्तियाँ विशेष हैं।
बैजनाथ की मूर्ति: जिनका चार हाथ हैं और विभिन्न मुद्राओं में हैं।
वैष्णव संप्रदाय से संबंधित मूर्तियाँ : वैष्णव धर्म की मूर्तियाँ भी यहाँ की कलाओं का अभिन्न हिस्सा हैं। जैसे विष्णु की खड़ी प्रतिमा, जिसे ठकुरद्वारा और आदिबदरी में देखा जा सकता है। यहाँ की मूर्तियों में दैहिक सजावट और अलंकरण कौशल का विशेष ध्यान रखा गया है।
वैष्णव मूर्तियों के उदाहरण
अद्भुत विष्णु प्रतिमाएँ: जैसे काशीपुर की वामन मूर्ति और बदरीनाथ की प्रसिद्ध मूर्ति जो सर्वशक्तिमान मानी जाती है।
अन्य महत्वपूर्ण मूर्तियाँ : उत्तराखंड में देवी-देवताओं की भी अनेक मूर्तियाँ हैं। जैसे पार्वती की विभिन्न मूर्तियाँ, जो उमा और गौरी के नाम से भी जानी जाती हैं। इनमें वैजनाथ की मूर्तियाँ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। दुर्गा और महाकाली की मूर्तियाँ भी यहाँ प्रसिद्ध हैं, जैसे जागेश्वर और कालीमठ की सिंहवाहिनी प्रतिमाएँ।
देवी मूर्तियों के उदाहरण
गजलक्ष्मी और दुर्गा की मूर्तियाँ: जिनकी कलात्मकता और धार्मिक महत्व अद्भुत हैं। दुर्गा की बहुत सी मूर्तियाँ, जैसे जागेश्वर की सिंहवाहिनी प्रतिमाएँ और वैजनाथ संग्रहालय की मूर्तियाँ आकर्षक हैं।
उत्तराखंड की कला का सांस्कृतिक संदर्भ
उत्तराखंड की कला केवल धार्मिक दृष्टिकोण से संबंधित नहीं है, बल्कि यह स्थानीय लोगों की परंपराओं, और सांस्कृतिक मूल्यों का भी प्रतिनिधित्व करती है। यहाँ की मूर्तियाँ और मंदिर न केवल पूजा के स्थान हैं, बल्कि वे यहाँ के लोकजीवन के अभिन्न हिस्सा भी हैं। स्थानीय पर्वों, उत्सवों और अनुष्ठानों में इनका उपयोग होता है, जो उन्हें और भी महत्वपूर्ण बनाता है।
निष्कर्ष
उत्तराखंड की कलाएं अद्वितीय हैं, जो इसे भारतीय सांस्कृतिक धरोहर में एक महत्वपूर्ण स्थान देती हैं। यहाँ की वास्तुकला, मूर्तिकला और मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं, बल्कि कला की उत्कृष्टता और सांस्कृतिक विविधता का प्रतीक भी हैं। विभिन्न धर्मों का अस्तित्व और उनके विभिन्न मूर्तिकला रूपों के माध्यम से, उत्तराखंड ने अपने सांस्कृतिक परिदृश्य को गहराई से समृद्ध किया है। इसलिए, इन कलाओं का संरक्षण और अध्ययन न केवल हमारी धरोहर से जुड़ने का एक तरीका है, बल्कि एक अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर को संजोने का भी प्रयास है।
उत्तराखंड की विविध कलाओं में एक समृद्ध इतिहास, धर्म, और संस्कृति का मधुर समागम होता है, जो इसे प्राचीन काल से वर्तमान तक के सामाजिक, आर्थिक, और धार्मिक जीवन के साथ जोड़ता है।