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उत्तराखंड की लोकगाथाओं का वाद्य यंत्र ‘हुड़का’

प्रस्तावना:

हुड़का उत्तराखंड का एक पारंपरिक और महत्वपूर्ण हाथ से बजाया जाने वाला ताल वाद्य है। यह वाद्य यंत्र न केवल संगीत प्रदान करता है, बल्कि यह हुड़का बौल नामक एक अनूठी लोक कला का केंद्र भी है। हुड़का बौल में एक कलाकार इस वाद्य यंत्र को बजाते हुए ऐतिहासिक और लोक कथाओं का वर्णन करता है। यह प्रदर्शन केवल मनोरंजन के लिए नहीं होता है, बल्कि इसका एक गहरा सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व होता है। हुड़का और हुड़का बौल का यह जुड़ाव उत्तराखंड की मौखिक कथावाचन परंपरा को जीवित रखता है, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी कहानियों और मूल्यों को हस्तांतरित करता है।

हुड़का वाद्य यंत्र का स्वरूप: हुड़का एक छोटे आकार का ताल वाद्य है, जिसे लकड़ी या मिट्टी के एक घंटे के आकार के खोल से बनाया जाता है। इसके दोनों सिरों पर चमड़े की खाल को कसा जाता है। इसे कमर में बांधकर या हाथ में लेकर बजाया जाता है। वादक अपनी उंगलियों की थाप से विभिन्न प्रकार की ध्वनियाँ और ताल उत्पन्न करते हैं। यह वाद्य यंत्र अपनी गूंजने वाली  ध्वनि के लिए जाना जाता है, जो हुड़का बौल की कहानियों में नाटकीयता जोड़ती है।

हुड़का बौल का केंद्रीय वाद्य: हुड़का हुड़का बौल प्रदर्शन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। ‘हुड़का बौल’ शब्द का अर्थ ही ‘हुड़का बजाते हुए बोलना’ है। इस प्रदर्शन में, मुख्य गायक (बौल) अपनी हुड़का को बजाते हुए कहानियों को गाकर या बोलकर सुनाता है। हुड़का की ताल कथा के प्रवाह को नियंत्रित करती है, और यह कथा के मूड के अनुसार बदलती रहती है, जिससे श्रोताओं को कहानी में रुचि बनी रहती है।

ऐतिहासिक और वीरतापूर्ण कहानियाँ: हुड़का बौल में अक्सर ऐतिहासिक नायकों, पौराणिक पात्रों और सामाजिक घटनाओं की कहानियाँ गाई जाती हैं। ये कहानियाँ वीरता, बलिदान और संघर्ष को दर्शाती हैं, और ये दर्शकों में देशभक्ति और सामुदायिक भावना का संचार करती हैं। हुड़का की थाप से ये कहानियाँ और भी प्रभावशाली बन जाती हैं, और श्रोताओं को गहराई से छूती हैं।

सामाजिक गतिशीलता का माध्यम: ऐतिहासिक रूप से, हुड़का बौल का उपयोग गाँव के लोगों को सामूहिक कार्य के लिए जुटाने के लिए किया जाता था। फसल कटाई, सड़क निर्माण या अन्य सामुदायिक कार्यों के लिए लोगों को इकट्ठा करने के लिए हुड़का बजाकर संदेश दिया जाता था। इस तरह यह एक तरह से सामाजिक जुड़ाव और सामुदायिक गतिशीलता का माध्यम बन गया।

मौखिक कथावाचन की परंपरा: हुड़का बौल उत्तराखंड की मौखिक कथावाचन परंपरा का एक बेहतरीन उदाहरण है। यह बिना किसी लिखित पाठ के कहानियों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाने का काम करता है। यह परंपरा लोगों को उनकी सांस्कृतिक जड़ों और इतिहास से जोड़े रखती है, और इसे समय के साथ भूलने से बचाती है।

निष्कर्ष:

हुड़का और हुड़का बौल का रिश्ता संगीत और कथावाचन के बीच एक गहरा संबंध दर्शाता है। हुड़का केवल एक वाद्य यंत्र नहीं है, बल्कि यह ऐतिहासिक स्मृति, सामाजिक एकता और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। यह एक ऐसा माध्यम है जो कहानियों को जीवंत बनाता है और उत्तराखंड की समृद्ध मौखिक परंपरा को जीवित रखता है।

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