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उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियां

परिचय

उत्तराखंड केवल अपनी भौगोलिक सुंदरता और प्राकृतिक संसाधनों के लिए नहीं बल्कि अपनी बहुरंगी संस्कृतियों और जनजातीय समुदायों के लिए भी जाना जाता है। जनजातियां ऐसे सामाजिक समूह होते हैं जिनकी पहचान उनकी संस्कृति, रीति-रिवाज और आदिवासी जीवनशैली से होती है। ये समुदाय अक्सर सभ्य समाजों से अलग रहते हैं और अपनी विशिष्ट सामाजिक संरचना और परंपराओं को बनाए रखते हैं। उत्तराखंड में कई जनजातियां निवास करती हैं, जिनमें सबसे प्रमुख थारू, जौनसारी, भोटिया, बोक्सा, और राजी हैं।

थारू जनजाति

स्थान और इतिहास : थारू जनजाति उत्तराखंड का सबसे बड़ा जनजातीय समुदाय है, जो मुख्यतः उधमसिंह नगर जिले के खटीमा, किच्छा, और सितारगंज क्षेत्रों में रहती है। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि ये लोग राजस्थान के थार मरुस्थल से यहां आए, जबकि अन्य का मानना है कि इनकी उत्पत्ति किरात वंश से हुई है।

सांस्कृतिक विशेषताएं : थारू जनजाति की संस्कृति मातृसत्तात्मक होती है। परिवार की मुखिया आमतौर पर महिला होती है, और परिवार की संरचना एकाकी या संयुक्त रूप में हो सकती है। महत्वपूर्ण त्योहारों में होली, दशहरा और माघ की खिचड़ी शामिल हैं। दीपावली को ये शोक पर्व के रूप में मनाते हैं। विवाह की विधि में “बदला” विवाह प्रथा प्रचलित है, जिसमें बहनों का आदान-प्रदान किया जाता है।

भाषा और परिधान : थारू अपनी स्थानीय बोली में संवाद करते हैं और उनकी पारंपरिक परिधान में पुरुषों का धोती-कुर्ता और महिलाओं का लंहगा शामिल है।

जौनसारी जनजाति

स्थान और इतिहास : जौनसारी जनजाति उत्तराखंड की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति है, जो देहरादून के चकराता, कालसी, और उत्तरकाशी के क्षेत्रों में निवास करती है। ये लोग आमतौर पर इण्डो-आर्यन परिवार से संबंधित माने जाते हैं।

सांस्कृतिक विशेषताएं : जौनसारी जनजाति अपनी कृषि कौशल और बुनाई में विशेष रूप से कुशल है। उन्हें यह गर्व है कि वे पांडवों के वंशज हैं। उनकी प्रमुख पारंपरिक त्यौहारों में बिस्सू (वैशाखी), पंचाई (दशहरा), और दियाई (दीपावली) शामिल हैं। ये अनूठी विधियों में विवाह करते हैं, जैसे बेवीकी और बोईदोदी वैवाहिक प्रथाएं।

भाषा और परिधान :  जौनसारी भाषा इनकी मातृभाषा है, हालांकि कुछ लोग देवघारी और हिमाचली बोलियों का भी प्रयोग करते हैं। पुरुष झंगोली (ऊनी पजामा) और डिगुबा (टोपी) पहनते हैं, जबकि महिलाएं झगा (कुर्ती-कमीज) और चोल्टी (चोली) पहनती हैं।

भोटिया जनजाति

स्थान और इतिहास : भोटिया जनजाति उत्तराखंड की एक प्राचीन जनजाति मानी जाती है, जो प्रमुख रूप से पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी में निवास करती है। ये लोग अपने आप को खस राजपूतों के वंशज मानते हैं।

सांस्कृतिक विशेषताएं : भोटिया जनजाति के लोग प्रतिवर्ष तिब्बती संस्कृति के प्रभाव में आते हैं। ये भेड़-बकरी पालन में कुशल हैं और उन्नत व्यापारिक संबंध रखते हैं। भोटिया विवाह प्रथाएं विशेष रूप से बहुपत्नी प्रथा की ओर झुकी होती हैं, और उनकी पूजा-पद्धति में हिंदू और बौद्ध धर्म का मिश्रण देखने को मिलता है।

भाषा और परिधान : इनकी भाषा भोटी है, जो तिब्बती एवं मंगोलियन भाषा के तत्वों से मिलकर बनी है। भोटिया पुरुषों का पारंपरिक वस्त्र अंगरखा और स्त्रियों का च्यूमाला होता है।

बोक्सा जनजाति

स्थान और इतिहास : बोक्सा जनजाति उत्तराखंड के तराई-भाबर क्षेत्र में उधमसिंहनगर के बाजपुर, गदरपुर, और नैनीताल के रामनगर में पाई जाती है। इनके वंशजों के बारे में विद्वानों के अलग-अलग दृष्टिकोण हैं; कुछ इन्हें पंवार वंश से जोड़ते हैं, जबकि अन्य मराठों से प्रभावित मानते हैं।

सांस्कृतिक विशेषताएं : बोक्सा लोग हिंदू देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। उनके प्रमुख त्योहारों में हरेला और बैकुंठ चतुर्दशी शामिल हैं। इनकी शारीरिक बनावट मिश्रित प्रजातीय लक्षणों को दर्शाती है।

भाषा और परिधान : बोक्सा जनजाति का परिधान में पुरुष धोती, कुर्ता, और पगड़ी शामिल है, जबकि महिलाएं लंहगा और चोली पहनती हैं।

राजी जनजाति

स्थान और इतिहास :  राजी जनजाति उत्तराखंड की एकमात्र आदिवासी समूह है, जो आज भी जंगलों में निवास करती है। ये लोग मुख्यतः पिथौरागढ़ और चम्पावत जनपद में बसते हैं।

सांस्कृतिक विशेषताएं : राजी जनजाति की विवाह प्रथाएं काफी रोचक हैं, जिसमें सांगजांगी और पिन्ठा की प्रथाएँ शामिल हैं। इनका प्रमुख त्योहार कारक संक्रांति और मकर संक्रांति हैं, जिसमें विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियाँ होती हैं। विशेष नृत्य रिंगडांस इनकी पहचान है।

भाषा और परिधान : इनकी मातृभाषा मुंडा है, मगर स्थानीय भाषा का भी प्रभाव देखने को मिलता है। पुरुष आमतौर पर अंगरखा और पगड़ी पहनते हैं, जबकि महिलाएं लंहगा और ओढ़नी पहनती हैं।

निष्कर्ष

उत्तराखंड की जनजातियां न केवल राज्य का सांस्कृतिक धरोहर हैं, बल्कि आधुनिकता के इस दौर में अपनी परंपराओं को बचाए रखने का एक प्रतीक भी हैं। उनकी उपासना की गई संस्कृति, अनेकों त्योहार, और अनूठी परंपराएँ एक अद्वितीय सामाजिक दर्पण प्रदान करती हैं। इन जनजातियों का जीवनस्तर और विवेचना उस विविधता का अनुभव कराती है, जो उत्तराखंड को अद्वितीय बनाती है। इनके द्वारा संरक्षित संपत्ति, भारतीय संस्कृति के समृद्ध ताने-बाने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे समझना और सम्मान करना चाहिए।

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