Rankers Domain

  • Home
  • UK PCS
  • उत्तराखंड की जलवायु

उत्तराखंड की जलवायु

परिचय

उत्तराखंड भारत के उत्तरी भाग में स्थित एक ऐसा राज्य है जहाँ की जलवायु अत्यधिक विविधतापूर्ण है। इसकी भौगोलिक स्थिति, धरातलीय संरचना और ऊँचाई का स्पष्ट प्रभाव यहाँ की जलवायु पर पड़ता है। इस राज्य की जलवायु का अध्ययन करते समय इसे भौगोलिक श्रेणियों के अनुसार विभिन्न वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।

उत्तराखंड की भौगोलिक संरचना

उत्तराखंड की भौगोलिक संरचना में ऊँचे पर्वत, नदियाँ, घाटियाँ और निचले क्षेत्र शामिल हैं। इस प्रदेश के अधिकांश भाग में हिमालय पर्वतमाला फैली हुई है, जिसकी ऊँचाई 4000 मीटर से अधिक है। पर्वतीय क्षेत्र में स्थित होने के कारण अल्मोड़ा, नैनीताल, चमोली, पिथौरागढ़, उत्तरकाशी और टिहरी जैसे जिले की जलवायु को अति शीत और आर्द्र बनाते हैं। वहीं, शिवालिक क्षेत्र में कुछ निचले इलाके हैं जहाँ की जलवायु अधिक गर्म होती है। इसके अलावा, तराई क्षेत्र में भी जलवायु का प्रभाव महत्वपूर्ण है, जहाँ की भूमि अधिक उपजाऊ होती है।

ऋतु और ऋतु की विशेषताएँ

ग्रीष्म ऋतु

उत्तराखंड में ग्रीष्म ऋतु, स्थानीय भाषा में जिसे “रुरी” कहा जाता है, यह मार्च से शुरू होकर मध्य जून तक चलती है। इस दौरान, पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी हवाओं के प्रभाव से तापमान में वृद्धि होने लगती है। पर्वतीय हरी घाटियों में मौसम उष्णकटिबंधीय होता है, जहाँ अधिकतम तापमान 24° से 30° सैल्सियस के बीच रहता है। ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में तापमान कुछ कम होता है, जबकि निचले क्षेत्रों में गर्मी का अनुभव अधिक होता है।

ग्रीष्म ऋतु की विशेषताएँ

ग्रीष्म ऋतु के दौरान, विशेषकर यहाँ के पहाड़ी स्थलों जैसे नैनीताल, मसूरी, और चकराता में बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। उत्तराखंड की प्राकृतिक सुंदरता, ठंडा मौसम और यहाँ के पर्यटन के विकल्प गर्मियों में इस राज्य को एक स्वर्गिक स्थल बनाते हैं। यहाँ की झीलें, जलप्रपात और हरे-भरे बगीचे यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

शीत ऋतु

उत्तराखंड में शीत ऋतु का प्रारंभ लगभग नवंबर से होता है और जनवरी तक जारी रहता है। इस अवधि में तापमान धीरे-धीरे गिरकर 0° सैल्सियस या कभी-कभी इससे भी नीचे पहुँच जाता है। जनवरी महिना यहाँ का सबसे ठंडा महिना माना जाता है। तीव्र ठंड के कारण उच्च हिमालयी क्षेत्रों में नियमित रूप से हिमपात होता है और पर्वतीय शिखर बर्फ से ढक जाते हैं।

हिमपात और वर्षा

शीत ऋतु में वर्षा प्रमुख रूप से पश्चिमी विक्षोभों से होती है। यह चक्रवात उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में अधिकतम वर्षा लाते हैं, जिससे गढ़वाल और कुमाऊँ क्षेत्रों में जल स्रोतों का स्तर बढ़ता है। उच्चतम ऊँचाई वाले क्षेत्रों में इस समय हिमपात होता है, जो कि लंबी अवधि तक बर्फ़ को टिकाए रखता है।

वर्षा ऋतु

उत्तराखंड में वर्षा ऋतु का आगमन जून के मध्य से होता है। इस समय बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से मानसूनी हवाएँ उठकर उत्तराखंड पहुँचती हैं। जुलाई और अगस्त के महीनों में वर्षा की अधिकतम मात्रा देखी जाती है, जो कि राज्य की कृषि और जल स्रोतों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।

जलवायु का प्रभाव

वर्षा ऋतु में भारी वर्षा होने के कारण क्षेत्र में भूस्खलन और जलप्रवाहित समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। वर्षा का मुख्य स्रोत होने के कारण, उत्तराखंड में सिंचाई की आवश्यकता भी बढ़ जाती है। यहाँ के पहाड़ी क्षेत्रों में बारिस की मात्रा अधिक होती है, जिसके चलते कृषि में बुवाई का कार्य प्रभावित होता है।

शिवालिक क्षेत्र की जलवायु

शिवालिक क्षेत्र की जलवायु पर्वतीय प्रदेश की तुलना में अधिक गर्म और आर्द्र होती है। ग्रीष्मकालीन तापमान यहाँ 29° से 32° सैल्सियस के बीच होता है, जबकि शीतकालीन तापमान 4° से 7° सैल्सियस तक गिर जाता है। वार्षिक वर्षा की मात्रा 200 से 250 सेमी के बीच होती है।

इस क्षेत्र की जलवायु गर्म रहने के कारण, यहाँ की जनसंख्या अधिक होती है और लोग गर्मियों में पहाड़ी क्षेत्रों का रुख करते हैं। यहाँ की उपजाऊ भूमि पर विभिन्न प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं, विशेषकर मक्का, गेहूँ और धान।

जलवायु कटिबन्ध

उत्तराखंड में विभिन्न जलवायु कटिबन्धों का अध्ययन किया जाता है, जो कि सामान्यतः ऊँचाई पर आधारित होते हैं।

उष्ण कटिबन्ध (300-900 मीटर): यहाँ का औसत तापमान 18° से 21° सैल्सियस होता है। उष्णकटिबंधीय जलवायु वाले इस क्षेत्र में मुख्यतः फसलें जैसे धान और मक्का उगाई जाती हैं।

शीत शीतोष्ण कटिबन्ध (900-1800 मीटर): इस कटिबन्ध में औसत तापमान 10° से 14° सैल्सियस होता है। यहाँ की जलवायु अधिक शीतल रहने के कारण, उच्च गुणवत्ता वाली वनस्पति और फल उत्पादन की संभावना अधिक होती है।

अन्य कटिबन्ध

शीत कटिबन्ध (2400-3000 मीटर): औसत तापमान 5° से 10° सैल्सियस होता है। इस क्षेत्र में बर्फबारी आम है और यहाँ की भूमि पर कम फसलें उगाई जाती हैं।

हिमाच्छादित क्षेत्र: यहाँ का तापमान अत्यधिक कम और बर्फ से ढका रहता है, जिससे फसल उत्पादन संभव नहीं हो पाता।

वर्षा का वितरण

उत्तराखंड में वर्षा की मात्रा भूगोल और स्थलाकृति पर निर्भर करती है। शिवालिक पहाड़ियों और तराई क्षेत्र में वर्षा की मात्रा 200 से 400 सेमी तक होती है, जबकि लघु हिमालयी नदी घाटियों में यह 120 से 200 सेमी के बीच रहती है।

ऊँचाई का प्रभाव

वर्षा की मात्रा अधिकतर ऊँचाई पर निर्भर रहती है। जैसे-जैसे ऊँचाई बढ़ती है, वर्षा की मात्रा कम होती जाती है। उच्च हिमालय क्षेत्र (2400 मीटर से अधिक) में वर्षा कम होने के कारण यहाँ की जलवायु ठंडी और शुष्क होती है।

तापक्रम का वितरण

उत्तराखंड में तापमान के वितरण की विविधता भौगोलिक विषमताओं के कारण होता है। सामान्यतः, हर 1000 मीटर की ऊँचाई पर तापमान 6° सैल्सियस घटता है। पर्वतीय क्षेत्र में तापमान के विविधताएं ऋतु के अनुसार भी बदलती हैं।

मानव जीवन पर प्रभाव

जलवायु का प्रभाव न केवल वनस्पति पर होता है, बल्कि यह मानव जीवन, सांस्कृतिक गतिविधियों और आर्थिक विकास को भी प्रभावित करता है। ठंडी जलवायु, राज्य के पर्वतीय पर्यटन को बढ़ावा देती है, जबकि ग्रीष्मकाल में यहाँ की फसल उत्पादन में वृद्धि होती है।

निष्कर्ष

उत्तराखंड की जलवायु उसकी भौगोलिक और भौतिक संरचना के आधार पर अत्यधिक विविध है। ग्रीष्म ऋतु, शीत ऋतु, वर्षा ऋतु, शिवालिक क्षेत्र तथा विभिन्न जलवायु कटिबन्धों के अध्ययन से पता चलता है कि यहाँ की जलवायु प्राकृतिक विविधता से प्रभावित होती है, और यह मानवीय जीवन और कृषि के विकास को भी प्रभावित करती है।

Recent Posts