Rankers Domain

आपदा जोखिम न्यूनीकरण में स्वदेशी ज्ञान की भूमिका

परिचय

स्वदेशी ज्ञान (Indigenous Knowledge – IK), जिसे पारंपरिक ज्ञान या स्थानीय ज्ञान भी कहा जाता है, उन समुदायों द्वारा पीढ़ियों से संचित अनुभव, प्रथाओं और विश्वासों का एक समृद्ध भंडार है जो अपने स्थानीय पर्यावरण के साथ घनिष्ठ संबंध में रहते हैं। यह ज्ञान अक्सर अवलोकन परीक्षण और त्रुटि (ट्रायल एंड एरर), और मौखिक परंपराओं के माध्यम से विकसित होता है, और यह समुदायों को प्राकृतिक खतरों को समझने, उनका पूर्वानुमान लगाने, उनसे बचाव करने और उनके प्रभावों से उबरने में मदद करता है। आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने आपदा प्रबंधन में महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन यह महसूस किया जा रहा है कि केवल तकनीकी समाधान पर्याप्त नहीं हैं। आपदा जोखिम न्यूनीकरण (Disaster Risk Reduction – DRR) में स्वदेशी ज्ञान को एकीकृत करना एक समग्र और अधिक प्रभावी दृष्टिकोण प्रदान करता है, जो समुदायों को अधिक लोचपूर्ण और आत्मनिर्भर बनाता है।

आपदा जोखिम न्यूनीकरण में स्वदेशी ज्ञान की भूमिका:

खतरों का पूर्वानुमान और प्रारंभिक चेतावनी: स्थानीय (स्वदेशी) समुदाय अपने पर्यावरण के साथ गहरे संबंध के कारण प्राकृतिक संकेतों (जैसे जानवरों का व्यवहार, पौधों में बदलाव, हवा का पैटर्न, बादलों का रंग) को देखकर आने वाले खतरों का पूर्वानुमान लगा सकते हैं। उदाहरण के लिए, हिमालयी क्षेत्रों में, स्थानीय लोग पक्षियों के असामान्य व्यवहार या विशिष्ट पौधों के फूलने के समय में बदलाव को देखकर भारी बारिश या भूस्खलन की संभावना का अनुमान लगा सकते हैं। यह ज्ञान आधुनिक मौसम पूर्वानुमान प्रणालियों की पहुँच से बाहर के दूरदराज के क्षेत्रों में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

आपदा-प्रतिरोधी निर्माण प्रथाएँ: स्वदेशी समुदायों ने स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री और पारंपरिक तकनीकों का उपयोग करके ऐसी संरचनाएँ विकसित की हैं जो स्थानीय खतरों, जैसे भूकंप, बाढ़ या भूस्खलन का सामना कर सकें। हिमालय में, पारंपरिक पत्थर और लकड़ी के घर, जो लचीलेपन और स्थिरता के सिद्धांतों पर आधारित होते हैं, भूकंप के झटकों का सामना करने में आधुनिक कंक्रीट संरचनाओं की तुलना में बेहतर साबित हुए हैं। बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में ऊँचे मंचों पर घर बनाना या जल-प्रतिरोधी सामग्री का उपयोग करना भी इसका उदाहरण है।

भूमि उपयोग और संसाधन प्रबंधन: स्वदेशी ज्ञान में स्थायी भूमि उपयोग प्रथाएँ शामिल हैं जो प्राकृतिक खतरों के जोखिम को कम करती हैं। इसमें ढलानों पर खेती के लिए सीढ़ीदार खेत बनाना (जो मिट्टी के कटाव को रोकता है), विशिष्ट क्षेत्रों में वनीकरण करना (जो भूस्खलन को नियंत्रित करता है), और जल स्रोतों का प्रबंधन करना शामिल है। वे जानते हैं कि कौन से क्षेत्र बाढ़ या भूस्खलन के प्रति संवेदनशील हैं और उन क्षेत्रों में बस्तियाँ बनाने से बचते हैं।

पारंपरिक कृषि और खाद्य सुरक्षा: स्वदेशी समुदायों ने ऐसी कृषि पद्धतियाँ विकसित की हैं जो स्थानीय जलवायु और मिट्टी की स्थिति के अनुकूल होती हैं और चरम मौसमी घटनाओं का सामना कर सकती हैं। वे सूखे-प्रतिरोधी फसलों की किस्मों, पारंपरिक सिंचाई विधियों और खाद्य भंडारण तकनीकों का उपयोग करते हैं जो आपदा के समय खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद करती हैं।

पारिस्थितिक बहाली और संरक्षण: स्वदेशी ज्ञान में पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण और पुनर्निर्माण के तरीके शामिल हैं। वे जानते हैं कि कौन से पेड़ और पौधे मिट्टी को स्थिर करने, जल स्रोतों को रिचार्ज करने और जैव विविधता को बनाए रखने में मदद करते हैं। वनों का सतत प्रबंधन और प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग आपदाओं के प्रभावों को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

आपदा प्रतिक्रिया और खोज-बचाव: आपदा के बाद, स्थानीय समुदाय अपने पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करके प्रभावित क्षेत्रों तक पहुँचने, फंसे हुए लोगों को खोजने और प्राथमिक उपचार प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनके पास इलाके का गहरा ज्ञान होता है और वे अक्सर बाहरी सहायता के पहुँचने से पहले ही प्रतिक्रिया (रेस्पॉन्स) देना शुरू कर देते हैं।

सामाजिक एकजुटता और सामुदायिक लचीलापन: स्वदेशी समुदायों में मजबूत सामाजिक संरचना और एकजुटता की भावना होती है। आपदा के समय, ये सामाजिक नेटवर्क एक दूसरे का सहयोग या समर्थन करने, संसाधनों को साझा करने और सामूहिक रूप से पुनर्निर्माण करने में मदद करते हैं। पारंपरिक नेतृत्व और सामुदायिक निर्णय लेने की प्रक्रियाएँ आपदा के बाद की चुनौतियों का सामना करने में भी महत्वपूर्ण होती हैं।

स्वास्थ्य और स्वच्छता प्रथाएँ: स्वदेशी ज्ञान में पारंपरिक औषधीय पौधों का ज्ञान और स्वास्थ्य प्रथाएँ शामिल होती हैं जो आपदा के बाद की स्थितियों में बीमारियों से निपटने और स्वच्छता बनाए रखने में मदद कर सकती हैं, खासकर जब आधुनिक चिकित्सा सुविधाएँ अनुपलब्ध हों।

चुनौतियाँ और अवसर: स्वदेशी ज्ञान को आधुनिक आपदा प्रबंधन में एकीकृत करने में कुछ चुनौतियाँ हैं, जैसे ज्ञान का दस्तावेजीकरण (दिजिटाइजेशन) करना, इसे वैज्ञानिक रूप से मान्यता प्रदान करना, और इसे आधुनिक प्रणालियों के साथ जोड़ना। हालाँकि, अवसर भी बहुत हैं। स्वदेशी ज्ञान को शामिल करने से आपदा प्रबंधन योजनाएँ अधिक प्रासंगिक, प्रभावी और समुदाय-केंद्रित बन सकती हैं। यह स्थानीय स्वामित्व और भागीदारी को बढ़ावा देता है, जिससे समाधान अधिक स्थायी, सतत और टिकाऊ होते हैं।

आधुनिक विज्ञान के साथ तालमेल: स्वदेशी ज्ञान को आधुनिक वैज्ञानिक ज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ एकीकृत करना सबसे प्रभावी दृष्टिकोण है। उदाहरण के लिए, उपग्रह इमेजरी और मौसम पूर्वानुमान डेटा को स्थानीय पूर्वानुमान संकेतों के साथ जोड़कर एक अधिक व्यापक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली बनाई जा सकती है। यह तालमेल स्थानीय समुदायों को अधिक सशक्त बनाता है और आपदा जोखिम न्यूनीकरण में समग्र लचीलापन (फ्लेक्सिबिलिटी) बढ़ाता है।

निष्कर्ष

आपदा जोखिम न्यूनीकरण में स्वदेशी ज्ञान की भूमिका अमूल्य है। यह समुदायों को प्राकृतिक खतरों को समझने, उनसे बचाव करने और उनके प्रभावों से उबरने के लिए व्यावहारिक और सांस्कृतिक रूप से उपयुक्त समाधान प्रदान करता है। स्वदेशी ज्ञान न केवल खतरों का पूर्वानुमान लगाने और आपदा-प्रतिरोधी संरचनाएँ बनाने में मदद करता है, बल्कि यह स्थायी भूमि उपयोग प्रथाओं को भी बढ़ावा देता है और सामाजिक एकजुटता को मजबूत करता है। आधुनिक आपदा प्रबंधन को स्वदेशी ज्ञान को मान्यता देनी चाहिए, उसका सम्मान करना चाहिए और उसे अपनी रणनीतियों में सक्रिय रूप से एकीकृत करना चाहिए। यह एक सहयोगात्मक दृष्टिकोण है जो समुदायों को अधिक लचीला (फ्लेक्सिबल) बनाता है और उन्हें अपनी विकट पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करने के लिए सशक्त करता है, जिससे एक सुरक्षित और अधिक टिकाऊ भविष्य का निर्माण होता है।

Recent Posts