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अवैज्ञानिक सड़क और सुरंग निर्माण का पर्वतीय स्थिरता और पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव

प्रस्तावना:

हिमालय, अपनी विशालता, भूवैज्ञानिक जटिलता और अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्रों के कारण विश्व के सबसे महत्वपूर्ण और साथ ही सबसे नाजुक पर्वतीय क्षेत्रों में से एक है। इस क्षेत्र में कनेक्टिविटी बढ़ाना, आर्थिक विकास को बढ़ावा देना और रणनीतिक पहुँच सुनिश्चित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसी उद्देश्य से, हिमालयी राज्यों में सड़कों और सुरंगों का निर्माण तेजी से हो रहा है। हालाँकि, इन बुनियादी आधारभूत संरचनाओं का निर्माण, विशेष रूप से इस संवेदनशील भूभाग में, पर्वतीय स्थिरता और पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर और अक्सर अपरिवर्तनीय नकारात्मक प्रभाव डालता है। अनियोजित और अवैज्ञानिक निर्माण विधियाँ भूस्खलन, मिट्टी के कटाव और जैव विविधता के नुकसान को बढ़ाती हैं, जिससे इस क्षेत्र की प्राकृतिक वहन क्षमता और स्थानीय समुदायों की सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है।

अवैज्ञानिक सड़क और सुरंग निर्माण का पर्वतीय स्थिरता और पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ने वाले प्रमुख प्रभाव:

भूवैज्ञानिक अस्थिरता में वृद्धि: हिमालय एक युवा, भूगर्भीय रूप से सक्रिय और अस्थिर पर्वत श्रृंखला है। सड़क निर्माण के लिए पहाड़ों को काटना और ढलानों को अस्थिर करना, विशेषकर खड़ी ढलानों पर, इस प्राकृतिक अस्थिरता को कई गुना बढ़ा देता है। विस्फोटकों का उपयोग और भारी मशीनरी का कंपन चट्टानों की संरचना को कमजोर करता है, जिससे भूस्खलन और चट्टानों के गिरने का खतरा बढ़ जाता है।

ढलानों का कटना और भूस्खलन का ट्रिगर: सड़कों और सुरंगों के निर्माण के लिए पहाड़ों की ढलानों को सीधे काटा जाता है, जिससे ढलान का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ जाता है। यह कटाव मिट्टी और चट्टानों के लिए प्राकृतिक सहारा हटा देता है, जिससे वे बारिश, भूकंप या अन्य प्राकृतिक घटनाओं के कारण आसानी से खिसक सकती हैं। परिणामस्वरूप, भूस्खलन की आवृत्ति और तीव्रता में उल्लेखनीय वृद्धि होती है।

मलबे का अनुचित निस्तारण: सड़क और सुरंग निर्माण से भारी मात्रा में मलबा (excavated material) उत्पन्न होता है। इस मलबे को अक्सर नदियों के किनारों, वन क्षेत्रों या निचली ढलानों पर अनुचित तरीके से फेंक दिया जाता है। यह मलबा न केवल नदियों के प्रवाह को बाधित करता है और उन्हें प्रदूषित करता है, बल्कि यह स्वयं भी अस्थिर होकर भूस्खलन का कारण बन सकता है, जिससे कृषि भूमि और वनस्पति को नुकसान होता है।

वनों की कटाई और पर्यावास का नुकसान: सड़क और सुरंग परियोजनाओं के लिए बड़े पैमाने पर वनों को साफ किया जाता है। यह वनों की कटाई न केवल जैव विविधता को सीधे प्रभावित करती है, बल्कि मिट्टी की पकड़ को कमजोर करके मिट्टी के कटाव को भी बढ़ाती है। वनों के नुकसान से वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास खंडित हो जाते हैं, जिससे उन्हें भोजन और आश्रय खोजने में कठिनाई होती है, और मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ सकता है।

हाइड्रोलॉजिकल पैटर्न में व्यवधान: निर्माण गतिविधियाँ प्राकृतिक जल निकासी चैनलों, झरनों और भूजल पुनर्भरण क्षेत्रों को बाधित करती हैं। सड़कों और सुरंगों के निर्माण से पानी का प्राकृतिक बहाव बदल जाता है, जिससे कुछ क्षेत्रों में जल जमाव और दूसरों में जल संकट हो सकता है। इससे झरनों का सूखना और नदियों के प्रवाह में बदलाव आ सकता है, जिसका स्थानीय समुदायों और पारिस्थितिकी तंत्र पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

मिट्टी का कटाव और गाद जमाव: निर्माण स्थलों पर मिट्टी के उजागर होने से बारिश और हवा के कारण मिट्टी का कटाव बढ़ जाता है। यह कटाव वाली मिट्टी नदियों और नालों में बह जाती है, जिससे गाद (siltation) की मात्रा बढ़ जाती है। गाद नदियों की गहराई को कम करती है, जलीय जीवन को नुकसान पहुँचाती है, और जलविद्युत परियोजनाओं की क्षमता को कम करती है।

वायु और जल प्रदूषण: निर्माण गतिविधियों से भारी मात्रा में धूल उत्पन्न होती है, जिससे वायु प्रदूषण बढ़ता है और स्थानीय आबादी के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त, निर्माण स्थलों से निकलने वाले रसायन, तेल और ग्रीस बारिश के पानी के साथ बहकर जल स्रोतों को प्रदूषित कर सकते हैं, जिससे पानी की गुणवत्ता खराब होती है।

जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव: सड़कों और सुरंगों का निर्माण वन्यजीवों के आवासों को खंडित करता है और उनके आवागमन के गलियारों को बाधित करता है। यह जानवरों को सड़क पार करते समय वाहनों से टकराने के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है और उनके प्रजनन पैटर्न को भी प्रभावित कर सकता है। दुर्लभ और स्थानिक प्रजातियाँ विशेष रूप से प्रभावित होती हैं।

प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम में वृद्धि: सड़क और सुरंग निर्माण सीधे तौर पर भूस्खलन और आकस्मिक बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम को बढ़ाता है। अस्थिर ढलानें, बाधित जल निकासी और मलबे के ढेर इन घटनाओं के लिए ट्रिगर का काम करते हैं, जिससे जान-माल का नुकसान और बुनियादी ढाँचे का विनाश होता है।

सामाजिक-आर्थिक प्रभाव: निर्माण परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण से स्थानीय समुदायों का विस्थापन हो सकता है, जिससे उनकी आजीविका और सामाजिक ताना-बाना प्रभावित होता है। इसके अतिरिक्त, निर्माण के कारण होने वाली पर्यावरणीय गिरावट भी स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य और कृषि पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।

निष्कर्ष:

हिमालय में सड़क और सुरंग निर्माण, जहाँ एक ओर कनेक्टिविटी और विकास के लिए महत्वपूर्ण है, वहीं दूसरी ओर यह पर्वतीय स्थिरता और पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर और दूरगामी नकारात्मक प्रभाव डालता है। भूवैज्ञानिक अस्थिरता में वृद्धि, वनों की कटाई, जलज व्यवधान और प्राकृतिक आपदाओं के बढ़ते जोखिम इस नाजुक क्षेत्र के लिए एक गंभीर चेतावनी है। इस चुनौती का सामना करने के लिए, अनियोजित और अवैज्ञानिक निर्माण प्रथाओं से बचना अनिवार्य है। भविष्य की परियोजनाओं को व्यापक पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) और सामाजिक प्रभाव आकलन (SIA) के बाद ही शुरू किया जाना चाहिए। सतत निर्माण तकनीकों, मलबे के उचित निपटान, वनीकरण, और स्थानीय समुदायों की भागीदारी को प्राथमिकता देना ही हिमालय की प्राकृतिक अखंडता को बनाए रखने और उसके निवासियों के लिए एक सुरक्षित और टिकाऊ भविष्य सुनिश्चित करने का एकमात्र तरीका है।

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