प्रस्तावना:
नंदा देवी मेला उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र का एक प्रमुख और प्रसिद्ध मेला है, जो हर साल भाद्रपद महीने में आयोजित होता है। यह मेला नंदा देवी और सुनंदा देवी को समर्पित है। यह केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि कुमाऊँ की समृद्ध संस्कृति, परंपराओं और सामुदायिक जीवन का भी प्रतीक है। यह मेला स्थानीय लोगों के लिए एक गहरी आस्था और एकजुटता का अवसर होता है, जहाँ वे अपनी संस्कृति और विरासत का जश्न मनाते हैं।
देवी नंदा का धार्मिक महत्व: नंदा देवी को कुमाऊँ क्षेत्र की इष्टदेवी माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नंदा देवी हिमालय की पुत्री और भगवान शिव की पत्नी पार्वती का एक रूप हैं। उन्हें सृष्टि की रक्षक और जीवनदायिनी देवी के रूप में पूजा जाता है। यह मेला उनकी पूजा और सम्मान का प्रतीक है, जहाँ भक्त उनसे सुख, समृद्धि और अच्छी फसल के लिए प्रार्थना करते हैं। यह विश्वास लोगों के जीवन में एक मजबूत धार्मिक और आध्यात्मिक आधार प्रदान करता है।
भव्य शोभायात्रा और मूर्ति विसर्जन: मेले की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता नंदा और सुनंदा देवियों की मूर्तियों को लेकर निकाली जाने वाली भव्य शोभायात्रा है। ये जुलूस पारंपरिक संगीत, ढोल-नगाड़ों और लोकगीतों के साथ निकाले जाते हैं, जो उत्सव का माहौल बनाते हैं। शोभायात्रा के बाद मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है, जो देवी के कैलाश पर्वत पर वापस लौटने का प्रतीक माना जाता है। यह विसर्जन प्रकृति के साथ आध्यात्मिक पुनर्मिलन को दर्शाता है।
पारंपरिक कला और लोक संस्कृति का प्रदर्शन: नंदा देवी मेला कुमाऊँ की लोक कला और संस्कृति का एक अद्भुत मंच है। इस दौरान विभिन्न प्रकार के पारंपरिक लोक नृत्य जैसे छोलिया नृत्य और झोड़ा नृत्य का आयोजन होता है। स्थानीय कलाकार अपनी पारंपरिक वेशभूषा में लोकगीत गाते हैं। यह मेला स्थानीय कारीगरों को भी अपनी हस्तकला जैसे लकड़ी के काम, ऊनी कपड़े और आभूषणों को प्रदर्शित करने का अवसर देता है। यह सांस्कृतिक आदान-प्रदान और विरासत को जीवित रखने में मदद करता है।
सामुदायिक एकजुटता और सामाजिक सद्भाव: यह मेला सिर्फ धार्मिक गतिविधियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामुदायिक एकजुटता और सामाजिक सद्भाव का भी केंद्र है। इस दौरान लोग एक-दूसरे के घरों में आते-जाते हैं, पारंपरिक भोजन साझा करते हैं और साथ में उत्सव मनाते हैं। यह आपसी भाईचारे और रिश्ते को मजबूत करता है। यह अवसर कुमाऊँ के लोगों को अपनी जड़ों से जुड़ने और अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने का मौका देता है।
पर्यावरण और प्रकृति के प्रति सम्मान: नंदा देवी मेला प्रकृति के साथ गहरे संबंध का भी प्रतीक है। यह प्रकृति के साथ सामंजस्य का संदेश देता है। यह लोगों को यह सिखाता है कि प्रकृति और देवी-देवता एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। यह मेला प्रकृति की शक्ति और उसकी सुरक्षा के महत्व को दर्शाता है, जो हिमालयी समुदायों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष:
नंदा देवी मेला उत्तराखंड की अमिट सांस्कृतिक धरोहर का एक जीता-जागता उदाहरण है। यह धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक विरासत, सामुदायिक एकता और प्रकृति के प्रति सम्मान का एक सुंदर संगम है। यह मेला पीढ़ियों से चली आ रही परंपराओं को जीवित रखता है और स्थानीय लोगों के जीवन में एक विशेष स्थान रखता है। यह न केवल उत्तराखंड, बल्कि पूरे भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।